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जानिए कैसी पूजा से संतान पर कृपा बरसाती हैं अहोई माता
सभी मासों में श्रेष्ठ पावन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन रखा जाने वाला अहोई अष्टमी का व्रत विवाहित महिलाएं अपनी संतानों के सुखमय जीवन एवं हर विपदा से उनकी रक्षा के लिए करती हैं। इस व्रत को लोकभाषा में अहोई आठें या करकाष्टमी भी कहा जाता है। अहोई का शाब्दिक अर्थ है-अनहोनी को होनी में बदलने वाली शुभ तिथि। इस जगत में अनहोनी या दुर्भाग्य को टालने वाली जगत जननी जगदम्बा देवी पार्वती हैं,इसलिए इस दिन मां पार्वती की पूजा-अर्चना अहोई माता के स्वरूप में की जाती है। आज के दिन माताएं अपनी संतानों के सुखमय जीवन के लिए अहोई माता से आशीर्वाद लेती हैं।
तारों की छांव में होता है पूजन
अष्टमी तिथि को दिनभर उपवास रखने के बाद संध्याकाल में सूर्यास्त होने के उपरांत जब तारे निकलने लगते हैं, उस समय ही अहोई माता की पूजा करने का विधान है। पूर्व या उत्तरदिशा की तरफ अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। लकड़ी का पाटिया या चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखकर स्वास्तिक बनाएं। इसके रोली, चावल, पुष्प, कलावा आदि से माता अहोई की भक्तिभाव से पूजा संपन्न करते हुए आठ मीठे पुए या हलवे का भोग लगाकर देवी अहोई को प्रसन्न करें। दाहिने हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर कथा का श्रवण या वाचन करना चाहिए। चन्द्रमा के साथ तारों को अर्घ्य प्रदान कर अपने से बड़ों के चरण छूकर उनसे आशीर्वाद लें।
पूजा से संतान, कृपा बरसाती, अहोई माता, व्रत की कथा Children from worship, blessings rain, story of Ahoi Mata fastingपौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार के सात लड़के थे। दीपावली से पूर्व साहूकार की स्त्री घर की लीपा -पोती हेतु मिट्टी लेने खदान में गई व कुदाल से मिट्टी खोदने लगी। उसी जगह एक सेह की मांद थी। अचानक उस स्त्री के हाथ से कुदाल सेह के बच्चे को लग गई जिससे सेह का बच्चा तत्काल ही मर गया। अपने हाथ से हुई ह्त्या को लेकर साहूकार की पत्नी को बहुत दुःख हुआ परन्तु अब क्या हो सकता था। वह शोकाकुल पश्चाताप करती हुई अपने घर लौट आई। कुछ दिनों बाद उसके बेटे का निधन हो गया। फिर अचानक दूसरा , तीसरा ओर इस प्रकार वर्ष भर में उसके सातों बेटे मर गए। महिला अत्यंत शोक में रहने लगी। एक दिन उसने अपने आस-पड़ोस की महिलाओं को विलाप करते हुए बताया कि उसने जान-बूझकर कभी कोई पाप नही किया। हाँ , एक बार खदान में मिट्टी खोदते हुए अनजाने में उससे एक सेह के बच्चे की हत्या अवश्य हुई है और उसके बाद मेरे सातों पुत्रों की मृत्यु हो गयी।
यह सुनकर औरतों ने साहूकार की पत्नी को दिलासा देते हुए कहा कि यह बात बताकर तुमने जो पश्चाताप किया है उससे तुम्हारा आधा पाप नष्ट हो गया है। तुम उसी अष्टमी को भगवती माता कि शरण लेकर सेह ओर सेह के बच्चों का चित्र बनाकर उनकी आराधना करो और क्षमा -याचना करो। ईश्वर की कृपा से तुम्हारा पाप नष्ट हो जाएगा। साहूकार की पत्नी ने उनकी बात मानकर कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को उपवास व पूजा-याचना की। वह हर वर्ष नियमित रूप से ऐसा करने लगी। बाद में उसे सात पुत्रों की प्राप्ति हुई। आज के समय में भी माताओं द्वारा जब अपनी संतान की कामना के लिए अहोई माता का व्रत रखा जाता है तो निश्चितरूप से इसका शुभ फल उन्हें मिलता ही है और संतान चाहे पुत्र हो या पुत्री, उसको भी निष्कंटक जीवन का सुख मिलता है।
राधाकुण्ड में स्नान
ऎसी मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन परिक्रमा मार्ग में स्थित राधाकुण्ड में स्नान करने से निःसंतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इसी कारण अहोई अष्टमी की रात्रि में राधा कुण्ड के स्नान का विशेष महत्व है।