धर्म-अध्यात्म

स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती पर जानिए उनके अनमोल विचार

Tara Tandi
26 Feb 2022 4:30 AM GMT
स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती पर जानिए उनके अनमोल विचार
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स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती 26 फरवरी को मनाई जाती है. तनकारा नगर में इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था. स्वामी दयानंद सरस्वती न केवल आर्य समाज के संस्थापक थे

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती 26 फरवरी को मनाई जाती है. तनकारा नगर में इनका जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था. स्वामी दयानंद सरस्वती न केवल आर्य समाज के संस्थापक थे बल्कि वे देशभक्त होने के साथ-साथ महान चिंतक और समाज-सुधारक भी थे. इन्होंने (Dayanand Saraswati) समाज की तरक्की के लिए कई बड़े-बड़े कार्य किए. बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर कर समाज को नई दिशा दिखाई. इन कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने वेदों का प्रमाण दिया. आज के युवा जाग्रुक हैं. लेकिन उन्हें स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचारों को पढ़ना चाहिए. स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती पर जानते हैं उनके अनमोल विचार (Dayanand Saraswati Thoughts)

Swami Dayanand Saraswati: अनमोल विचार
वह अच्छा और बुद्धिमान है जो हमेशा सच बोलता है, धर्म के अनुसार काम करता है और दूसरों को उत्तम और प्रसन्न बनाने का प्रयास करता है.
धन एक वस्तु है जो ईमानदारी और न्याय से कमाई जाती है. इसका विपरीत है अधर्म का खजाना.
आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं.
जीवन में मृत्यु को टाला नहीं जा सकता. हर कोई ये जानता है, फिर भी अधिकतर लोग अन्दर से इसे नहीं मानते- 'ये मेरे साथ नहीं होगा.' इसी कारण से मृत्यु सबसे कठिन चुनौती है जिसका मनुष्य को सामना करना पड़ता है.
किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है. इसलिए, इसका परिणाम होगा. यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं.
हालांकि संगीत भाषा, संस्कृति और समय से परे है, और नोट समान होते हुए भी भारतीय संगीत अद्वितीय है क्योंकि यह विकसित है, परिष्कृत है और इसमें धुन को परिभाषित किया गया है.
कोई भी मानव हृदय सहानुभूति से वंचित नहीं है. कोई धर्म उसे सिखा-पढ़ा कर नष्ट नहीं कर सकता. कोई संस्कृति, कोई राष्ट्र कोई राष्ट्रवाद- कोई भी उसे छू नहीं सकता क्योंकि ये सहानुभूति है.
जो व्यक्ति सबसे कम ग्रहण करता है और सबसे अधिक योगदान देता है वह परिपक्कव है, क्योंकि जीने मेंही आत्म-विकास निहित है.
आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें. लेकिन, ये कभी ऐसे काम नहीं करता. दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं.


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