धर्म-अध्यात्म

जानिए देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि

Tara Tandi
8 July 2022 5:29 AM GMT
जानिए देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आषाढ़ माह की देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi) 10 जुलाई को है. इस दिन चातुर्मास शुरु होता है. भगवान विष्णु योग निद्रा में चार माह रहते हैं. इस वजह से कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होता है. हालांकि इन चार माह में आप भगवान विष्णु की पूजा और व्रत कर सकते हैं. इस पर कोई पाबंदी नहीं होती है. चातुर्मास (Chaturmas) प्रारंभ होने से विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि जैसे कार्य बंद हो जाएंगे. इस माह में भगवान शिव की आराधना होगी. वे चातुर्मास में पालक और संहारक दोनों ही भूमिकाओं में रहेंगे. तिरुपति के ज्योतिषाचार्य डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव से जानते हैं देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि के बारे में.

देवशयनी एकादशी के शुभ मुहूर्त
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि का शुभारंभ: 09 जुलाई, शनिवार, शाम 04 बजकर 39 मिनट से
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि का समापन: 10 जुलाई, रविवार, दोपहर 02 बजकर 13 मिनट पर
रवि योग प्रारंभ: 10 जुलाई, प्रात: 05 बजकर 31 मिनट से
रवि योग समापन: 11 जुलाई, सुबह 09 बजकर 55 मिनट पर
शुभ योग: 10 जुलाई, सुबह से देर रात 12 बजकर 45 मिनट तक
व्रत पारण का समय: 11 जुलाई, प्रात: 05 बजकर 31 मिनट से प्रात: 08 बजकर 17 मिनट तक
देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि
1. व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके लिए आप हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर संकल्प करें.
2. प्रात: से ही रवि योग है. ऐसे में आप प्रात: स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा कर सकते हैं. इसके लिए भगवान विष्णु की शयन मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें क्योंकि यह उनके शयन की एकादशी है.
3. अब आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत्, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते, पंचामृत आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें.
4. फिर माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें.
5. ​दिनभर फलाहार पर रहें. भगवत वंदना और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें. संध्या आरती के बाद रात्रि जागरण करें.
6. अगली सुबह स्नान के बाद पूजन करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिण देकर संतुष्ट करें.
7. इसे पश्चात पारण समय में पारण करके व्रत को पूरा करें. इस प्रकार से देवशयनी एकादशी को करना चाहिए.
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