धर्म-अध्यात्म

जानें विकट संकष्टी चतुर्थी तिथि, मुहूर्त, चंद्रोदय समय, व्रत एवं पूजा विधि के बारे में

Kajal Dubey
19 April 2022 1:32 AM GMT
जानें विकट संकष्टी चतुर्थी तिथि, मुहूर्त, चंद्रोदय समय, व्रत एवं पूजा विधि के बारे में
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आज वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है, जिसे विकट संकष्टी चतुर्थी कहते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है, जिसे विकट संकष्टी चतुर्थी कहते हैं. इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा विधिपूर्वक करते हैं. उनकी कृपा से सुख, सौभाग्य, शुभता, बुद्धि, धन, दौलत आदि में वृद्धि होती है. गणेश जी प्रथम पूज्य हैं, उनके आशीर्वाद के बिना आपको कोई कार्य सफल नहीं हो सकता है. उनके आशीर्वाद से तो बिगड़े काम भी बन जाते हैं और संकट दूर हो जाते हैं. कार्यों में आने वाली विघ्न बाधाएं पल भर में दूर हो जाती हैं. आइए जानते हैं जानें विकट संकष्टी चतुर्थी तिथि, मुहूर्त, चंद्रोदय समय, व्रत एवं पूजा विधि के बारे में

विकट संकष्टी चतुर्थी तिथि एवं मुहूर्त
वैशाख कृष्ण चतुर्थी तिथि का शुभारंभ: 19 अप्रैल, दिन मंगलवार, शाम 04:38 बजे से
वैशाख कृष्ण चतुर्थी तिथि का समापन: 20 अप्रैल, दिन बुधवार, दोपहर 01:52 बजे
अभिजीत मुहूर्त: दिन में 11:55 बजे से दोपहर 12:46 बजे तक
चंद्रोदय का समय: रात 09 बजकर 50 मिनट पर
राहुकाल: दोपहर 03:35 बजे से शाम 05:12 बजे तक
व्रत एवं पूजा विधि
1. संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन लें. फिर पूजा स्थान को साफ करके एक चौकी पर पीले वस्त्र बिछाकर गणेश जी की स्थापना करें.
2. हाथ में जल, अक्षत्, फूल आदि लेकर विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा का संकल्प करें.
3. पूजा के शुभ मुहूर्त में ओम गं गणपतये नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए गणपति को लाल फूल, फल, दूर्वा, मोदक, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, माला, लड्डू, चंदन, कुमकुम, रोली आदि अर्पित करें.
4. अब आप गणेश चालीसा एवं चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा के अंत में घी के दीपक या फिर कपूर से गणेश जी की विधिपूर्वक आरती करें.
5. दिनभर फलाहार पर रहें. रात्रि के समय में चंद्रमा को जल में दूध, अक्षत्, शक्कर आदि मिलाकर अर्पित करें. चंद्र देव की प्रार्थना करें.
6. चंद्रमा की पूजा के बिना संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण नहीं होता है, इसलिए आज के दिन चंद्रमा के उदय का इंतजार करना लंबा होता है.
7. पूजा के बाद आप अन्न, वस्त्र, फल, मिठाई आदि का दान करें. उसके बाद पारण करके व्रत को पूरा करें.


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