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गणपति की पूजा में प्रयोग किए जाने वाले विशेष मंत्र के बारे जानिए यहाँ
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| सिर्फ दूर्वा से प्रसन्न हो जाने वाले देवाधिदेव गणपति अपने भक्तों के सभी कष्टों और विघ्नों को दूर करने वाले हैं. गणपति की साधना करने वाला साधक जीवन में कभी भी दु:खी या निराश नहीं होता है क्योंकि गजानन उसके जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को पलक झपकते ही दूर कर देते हैं. इन दिनों गणपति उत्सव चल रहा है. ऐसे में गणपति की पूजा में कुछ विशेष मंत्रों का जप या पाठ करके आप उनकी विशेष कृपा पा सकते हैं. आइए जानते हैं कि गणपति की पूजा में प्रयोग किए जाने वाले विशेष मंत्र.
गणपति को प्रणाम करने का मंत्र
ॐ नमस्ते गणपतये।। त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।। त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।। त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।। त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।। त्वमेव सर्व खल्विदं ब्रह्मासि।। त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्।।
अर्थ : हे ओंकारेश्वर गणाधीश! तुमको नमस्कार करता हूँ। तुम्ही प्रत्यक्ष तत्त्व अर्थात् ब्रह्म हो. केवल तुम्ही सृष्टिकर्ता हो, केवल तुम्ही धारण करने वाले हो, सृष्टि के संहारक भी तुम्ही हो, सर्वब्रह्म भी तुम्ही हो एवं प्रत्यक्ष अविनाशी आत्मा भी केवल तुम्ही हो.
गणेश तांत्रिक मंत्र
गणपति की कृपा पाने के लिए गणेश तांत्रिक मंत्र अत्यंत ही अचूक उपाय है. इस मंत्र का जाप करने से सभी प्रकार की विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र वक्रतुंड, गणपति गुरू गणेश।
ग्लौम गणपति, रिद्धि पति, सिद्धि पति। मेरे कर दूर क्लेश।।
गणेश गायत्री मंत्र
गणपति की साधना-आराधना में गणेश गायत्री मंत्र का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है. प्रतिदिन इस मंत्र का 108 बार जाप करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हेाती हैं. श्रीगणेश जी के विभिन्न गायत्री – मन्त्र इस प्रकार हैं –
1. "ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।"
2. "ॐ महोत्कटाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।"
3. "ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।"
4. "ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।"
5. "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।।"
सुरक्षा के लिए जपें गणपति का यह मंत्र
अव त्वं माम् ।। अव वक्तारम् ।। अव श्रोतारम् ।। अव दातारम् । अव धातारम् ।। अव अनूचानम् अव शिष्यम् ।। अव पश्चात्तात् ।। अव पुरस्तात् ।। अव उत्तरात् ।। अव दक्षिणात् ।। अव उर्ध्वात् ।। अव अधारात् ।। सर्वतो माम् पाहि माम् , पाहि समंतात् ।।
अर्थ : मेरी रक्षा करें. वक्ता, श्रोता, दाता व धारण करने वाले का और विद्यादाता गुरु तथा विद्या प्राप्त करने वाले शिष्य की भी रक्षा करें. पश्चिम, पूर्व, उत्तर और दक्षिण एवं ऊपर-नीचे, चारों ओर से मेरी और हम सभी की रक्षा करें.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)