धर्म-अध्यात्म

जानें भगवान शिव के अर्धनारिश्वर रूप धारण करने को लेकर पौराणिक कथा के बारें में

Kajal Dubey
11 April 2022 1:35 AM GMT
जानें भगवान शिव के अर्धनारिश्वर रूप धारण करने को लेकर पौराणिक कथा के बारें में
x
भगवान शिव को सोमवार का दिन समर्पित किया गया है.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क।भगवान शिव को सोमवार का दिन समर्पित किया गया है. सृष्टि के कर्ता भगवान शिव का अस्तित्व शक्ति के बिना अधूरा माना जाता है. मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य बनाए रखने से ही सृष्टि का संचालन सुचारु रूप से होता है. शिव शक्ति का प्रतीक शिवलिंग इसी बात का प्रतीक है. भगवान शिव को पुरुष का प्रतीक वहीं देवी शक्ति को प्राकृति का प्रतीक बताया गया है. भगवान शिव बताते हैं कि यदि पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य नहीं होगा तो संसार का कोई भी काम सही तरीके से संपन्न होना असंभव है. कहते हैं जब भगवान शिव भिक्षु रूप और देवी शक्ति भैरवी रूप त्याग कर घरेलू रूप में प्रवेश करते हैं तब भगवान शिव, शंकर और देवी शक्ति ललिता बन जाती हैं. दोनों का एक-दूसरे पर संपूर्ण अधिकार है, जिसे प्रेम कहते हैं.

कैसे बने अर्द्धनारीश्‍वर
भगवान शिव के अर्धनारिश्वर रूप धारण करने को लेकर एक पौराणिक कहानी प्रचलित है. भगवान शिव-पार्वती के विवाह के बाद शिवभक्त भृंगी ने इच्छा जताई कि उन्हें भगवान शिव की प्रदक्षिणा करना है. तब शिव ने कहा आपको शक्ति की भी प्रदक्षिणा करना होगी, क्योंकि शक्ति बिना मैं अपूर्ण हूं. भृंगी तैयार नहीं हुए, और वे शिव-शक्ति के बीच प्रवेश करने की कोशिश करते हैं. ऐसा करने से शिवभक्त भृंगी को रोकने के लिए देवी शक्ति भगवान शिव की जंघा पर बैठ जाती हैं. तब भृंगी एक भौंरे का रूप लेकर दोनों की गर्दन के बीच से निकल कर शिव की परिक्रमा पूरी करने का विचार करते हैं.
उसी समय भगवान शिव अपना शरीर देवी शक्ति के शरीर से जोड़ लेते हैं. शिव का यही रूप अर्धनारीश्वर कहलाया. इस रूप को धारण करने के बाद भृंगी के लिए संभव नहीं था कि वह अकेले भगवान शिव की परिक्रमा कर पाएं. शिव ने शक्ति को अर्धांगिनी बनाकर स्‍पष्‍ट कर दिया कि स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष अपूर्ण है और शिव की भी प्राप्ति नहीं हो सकती. ऐसा सिर्फ देवी के माध्यम से ही हो सकता है.
समभाव और सौंदर्य का अनुभव
भगवान शिव के हृदय में माता पार्वती साधना के माध्यम से करुणा और समभाव जगाना चाहती हैं. अन्य तपस्वियों की तपस्या से अलग है माता पार्वती की साधना, क्योंकि सभी सुर-असुर और ऋषि, ईश्वर की प्राप्ति और अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए तपस्या करते हैं, लेकिन माता पार्वती अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि सृष्टि के मंगल के लिए तपस्या करती हैं.
शिव पुराण में उल्लेख मिलता है कि जब माता पार्वती भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या में लीन रहती हैं तब भगवान शिव उन्हें ध्यान से देखते हैं और पाते हैं कि सती ही पार्वती हैं. उन्हें लगता है यदि उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली तो माता पार्वती काली रूप धारण कर लेंगी. वहीं यदि उन्होंने अपनी आंखे खुली रखी तो वे सुंदर-सुरूप गौरी बनी रहेंगी. भगवान शिव प्रकृति के बारे में भी इसी तरह बताना चाहते हैं कि प्रकृति को ज्ञान रूपी दृष्टि से न देखें तो वह भयानक रूप धारण कर लेगी, और यदि ज्ञान रूपी दृष्टि से देखा जाएगा तो वह सजग और सुंदर प्रतीत होंगी. वहीं पार्वती शिव को अपना दर्पण दिखाती हैं, जिसमें वे अपना शंकर (शांत) रूप देख पाते हैं


Next Story