धर्म-अध्यात्म

जानें सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के गुरु गुरुनानक देव जी के बारें मे

HARRY
2 Aug 2022 4:30 PM GMT
जानें सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के गुरु   गुरुनानक देव जी के बारें मे
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गुरु नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के दस गुरुओं में से प्रथम गुरु माने जाते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गुरु नानक देव जी का जन्मदिन (Guru Nanak Birthday) अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक उनका 15 अप्रैल को पड़ता है. वे सिख धर्म (Sikh Religion) के संस्थापक और सिखों के दस गुरुओं में से प्रथम गुरु माने जाते हैं. वे लोगों में एक संत, दार्शनिक, समाज सुधारक, दार्शनिकयोगी, धर्म सुधारक, रहनुमा, कवि, और देशभक्त के रूप में जाने जाते हैं. उनके जीवन के कई छोटे छोटे किस्से लोगों को आज भी प्रेरित करते हैं. उन्हें अपने जीवन में पांच लंबी पैदल यात्राएं की थीं जिन्हें उदासियां (Udasis) कहा जाता है. इन यात्राओं में उन्होंने लोगों को जागृत करने के लिए उपदेश दिए.

कहां हुआ था जन्म
गुरू नानक का जन्म आज के पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के तलवंडी में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहब कहा जाने लगा. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार उनकी जन्म तिथि 15 अप्रैल 1469 मानी जाती है. लेकिन उनका जन्म दिवस कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही प्रकाशोत्सव पर्व के रूप में मनाया जाता है जो अक्टूबर नंबवर में दिवाली के 15 दिन बाद पड़ती है.
बचपन से धर्म आध्यात्म सतसंग में रुचि
गुरु नानक जी का बचपन से ही धर्म आध्यात्म में गहरी रुचि और सांसारिक कार्यों में उदासीनता थी. लोगों को उनके बचपन में ही कई तरह के चमत्कार देखने को मिले हैं. उनका हमेशा ही आध्यात्मिक धार्मिक चिंतन और सतसंग में मन लगा रहता था. विवाह के बाद उनके दो पुत्र हुए जिसके बाद वे अपने परिवार को अपने श्वसुर को सौंप कर तीर्थ यात्राओं पर निकल पड़े. इन्हीं यात्राओं को उदासी कहा जाता है.
क्यों कहा जाता है उदासियां
गुरुनानक में सुलतानपुर में ज्ञान प्राप्त करने के बाद ही घर छोड़ लंबी यात्राओं पर निकलने का फैसला किया उनकी इन यात्रों को उदासियां कहा जाता है क्योंकि इस दौरान उन्होंने गृहस्थ जीवन त्याग कर उदाससाधु सा जीवन बिताया. अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने हिंदू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम और अन्य संप्रदायों के तीर्थ स्थानों का भ्रमण किया और लोगों को एकीश्वरवाद के उपदेश दिए.
क्या था मकसद
गुरुनानक जी की तीर्थ यात्राओं का मकसद अपने धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान को जनजन तक पहुंचाना, धर्म और ईश्वर के वास्तविकस्वरूप की व्याख्या करना, लोगों में प्रचलित झूठे रीतिरिवाजों और कुरीतियों को खत्म करके उन्हें प्रेम ,त्याग, संयम और सदाचार के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करना था.
गुरु नानक की पहली यात्रा
1499 से 1509 के बीच पहली यात्रा में उन्होंने सय्यदपुर, तालुम्बा, कुरुक्षेत्र, पानीपत और दिल्ली की सैर सय्यदपुर, तालुम्बा, तलवंडी, पेहोवा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरख मत्ता, बनारस, गया, बंगाल, कामरूप (आसाम), सिलहट, ढाका और जगन्नाथ पूरी आदि स्थानों पर गए. पुरी से भोपाल, चंदेरी, आगरा और गुड़गांव होते हुए वे पंजाब लौट आए. अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने कई अमीरों, संतों, आदि को प्रभावित किया तो कई जगहों पर लोगों के अंधविश्वास को तोड़ कर दिखाया.
दूसरी से चौथी उदासी
गुरु नानक की तीसरी उदासी 1510 से 1515, तीसरी उदासी 1515 से 1517 और चौथी उदासी 1517 से 1521 के बीच हुई. दूसरी उदासी में राजसथान, मध्यप्रदेश, हैदराबाद से होते हुए रामेश्वरम और श्रीलंका की यात्रा की इसके बाद वे कोचीन, गुजरात, सिंध से होते हुए वापस आए कई लोगों को प्रभावित किया. तीसरी उदासी में वे कांगड़ा, चंबा, मंडी नादौन, बिलासपुर, कश्मीर की घाटी, कैलाश पर्वत और मान सरोवर झील पर गए. माना जाता है कि वे तिब्बत भी गए थे औरवहां से लद्दाख और जम्मू से होते हुए वह पंजाब लौटे. इस दौरान वे कई योगियों से भी मिले. जबकि चौथी उदासी में उन्होंने मक्का मदीना और बगदाद की यात्रा की और ईरान काबुल और पेशावर होते हुआ वापसी की.
इसके बाद गुरु नानक ने पंजाब के ही कई इलाकों की यात्रा की जिसके कहीं चौथी उदासी का हिस्सा तो कहीं पांचवी उदासी माना जाता है. वे जहां गए वहां उन्होंने लोगों को प्रभावित किया, उनके अंधविश्वास और कुरीतियों को तोड़ने का काम किया और तीर्थों पर पंडितों के साथ शास्त्रार्थ भी किया. उन्होंने किसी धर्म की खिलाफत तो नहीं की, लेकिन कट्टरपंथ को खारिज कर अपने उपदेशों से प्रभावित जरूर करते रहे.


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