धर्म-अध्यात्म

जानिए धूमावती जयंती की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में....

Tara Tandi
4 Jun 2022 6:35 AM GMT
Know about the date of Dhumavati Jayanti, the auspicious time and importance of worship....
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हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती मनाई जाती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती मनाई जाती है। अलक्ष्मी नाम से जाने जानी वाली मां धूमावती की जयंती का ये पर्व इस साल 08 जून 2022, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। मां धूमावती भगवान शिव द्वारा प्रकट की गई 10 महाविद्याओं में से एक हैं। ये सातवीं महाविद्या हैं। माता धूमावती दरिद्रता को दूर करती हैं। संतापों को मिटाती हैं और क्रोध को शांत करती हैं। धार्मिक मान्यता है कि वह अकेली हैं, उनके समान कोई दूसरी शक्ति नहीं है। कष्टों से बचने के लिए देवी धूमावती की पूजा-आराधना की जाती है। श्रद्धापूर्वक माता धूमावती की पूजा करने से प्राणियों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसे में आइए जानते हैं धूमावती जयंती की तिथि, पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में....

धूमावती जयंती 2022 तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस माह शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत 07 जून दिन मंगलवार को सुबह 07 बजकर 54 मिनट से होकर 08 जून बुधवार को सुबह 08 बजकर 30 मिनट तक मान्य रहेगी। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर इस साल 08 जून को धूमावती जयंती मनाई जाएगी।
धूमावती जयंती 2022 पूजा मुहूर्त
08 जून को प्रात: काल से ही सिद्धि योग लग रहा है। ये योग अगले दिन 09 जून को प्रात: 03 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा धूमावती जयंती के दिन प्रात: काल से सिद्धि और रवि योग रहेंगे। ऐसे में आप चाहें तो सुबह में धूमावती जयंती की पूजा कर सकते हैं।
पूजा विधि
धूमावती जयंती के दिन सुबह उठ कर स्नान आदि करके विधि-विधान से माता की पूजा करें। मां की पूजा के लिए सफेद रंग के फूल, आक के फूल, सफेद वस्त्र, केसर, अक्षत, घी, सफेद तिल, धतूरा, आक, जौ, सुपारी दूर्वा, गंगाजल, शहद, कपूर, चन्दन, नारियल पंचमेवा आदि का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही पूजा के दौरान नीचे दिए मंत्र का जाप जरूर करें।
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
मां धूमावती जन्म कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव-पार्वती कैलाश पर विचरण करते हुए विश्राम हेतु कुछ समय के लिए एक स्थान पर बैठ गए। कुछ देर बाद पार्वती को भूख सताने लगी, उन्होंने शिव से क्षुधापूर्ति की याचना की। काफी देर हों गई लेकिन भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाई और मां 'पार्वती' से भूख बर्दास्त नहीं हुई और स्वयं भगवती ने शिव को ही निगल लिया, जिससे उनके शरीर से धुआं निकलने लगा और शिव जी अपनी माया से बाहर आ गए।
बाहर आकर शिव ने पार्वती से कहा कि तुमने अपने पति को ही निगल लिया। अतः अब तुम विधवा हो गई हो इस कारण तुम सौभाग्यवती के श्रृंगार को छोड़कर वैधव्य वेष में रहो और संसार में 'धूमावती' नाम से विख्यात होगी।
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