धर्म-अध्यात्म

पितरों के लिए जरूर रखें ये व्रत, जानें डेट, शुभ मूहुर्त और पूजा विधि

Tara Tandi
8 Oct 2023 10:46 AM GMT
पितरों के लिए जरूर रखें ये व्रत, जानें डेट, शुभ मूहुर्त और पूजा विधि
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हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी मनाई जाती है. हिंदू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। इंदिरा एकादशी को श्राद्ध एकादशी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये एकादशी पितृपक्ष के दौरान आती है. पितरों की मुक्ति के लिए इंदिरा एकादशी का बहुत महत्व बताया गया है. इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उसकी सातवीं पीढ़ी तक के पूर्वजों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है. इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है. आइए जानते हैं कि इस साल कब है इंदिरा एकादशी का व्रत. साथ ही जानिए व्रत की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार इंदिरा एकादशी की शुरुआत 9 अक्टूबर दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 36 मिनट पर होगी जिसका समापन 10 अक्टूबर दिन मंगलवार को दोपहर 3 बजकर 8 मिनट पर होगा. ऐसे में इस साल इंदिरा एकादशी का व्रत 10 अक्टूबर दिन मंगलवार को रखा जाएगा.
इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए शुभ मूहुर्त है - सुबह 09 बजकर 13 मिनट से दोपहर 01 बजकर 35 मिनट तक और अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त 12 बजकर 08 मिनट से दोपहर 01 बजकर 35 मिनट तक है. व्रत का पारण 11 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार को सुबह 06 बजकर 19 मिनट से सुबह 08 बजकर 39 मिनट तक.
यह एकादशी श्राद्ध पक्ष में आती है और इसके प्रभाव से पितरों को मोक्ष मिलता है. इस एकादशी की पूजा विधि इस प्रकार है - अन्य एकादशियों की तरह इसका धार्मिक अनुष्ठान दशमी के दिन से शुरू होता है. दशमी के दिन घर पर ही भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करनी चाहिए. विष्णु जी को अक्षत्, पीले फूल, पंचामृत, तुलसी के पत्ते, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. फिर इस मंत्र का जाप करें. मंत्र है - 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' उसके बाद इंदिरा एकादशी व्रत कथा की कथा सुनें.
उसके बाद दोपहर के समय नदी में तर्पण करना चाहिए. श्राद्ध का तर्पण विधि-विधान के साथ करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करें. ध्यान रखें कि दशमी के दिन सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. एकादशी के दिन व्रत का संकल्प लें और सुबह जल्दी स्नान करें. एकादशी के दिन भी श्राद्ध विधि विधान से और ब्राह्मणों को भोजन कराने की यही प्रक्रिया अपनाएं. इसके बाद गाय, कौए और कुत्ते को भी भोजन कराएं. अगले दिन द्वादशी के दिन भगवान की पूजा करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें. फिर अपने परिवार के साथ मिलकर खाना खाएं
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