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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सावन मास में भगवान शिव की विधिवत पूजा करने का विधान है। भक्त गढ़ शिवजी की कृपा पाने के लिए विभिन्न तरीके से पूजा करके प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। वहीं सावन शिवरात्रि का दिन काफी खास होता है। क्योंकि इस दिन से कांवड़ यात्रा समाप्त हो जाती है और कांवड़िए लाए हुए गंगाजल से शिवजी का अभिषेक करते हैं। भगवान शिव को जल की धारा अधिक प्रिय है। माना जाता है कि जलाभिषेक करने से भोलेनाथ जल्द प्रसन्न हो जाते हैं और भक्त की हर मनोकामना को पूर्ण कर देते हैं। भगवान शिव का जलाभिषेक करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। इन नियमों को न मानने से पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है।
शिवजी का जलाभिषेक करते समय ध्यान रखें ये बातें
इस दिशा से चढ़ाएं शिवजी को जल
वेद-शास्त्रों के अनुसार, जब भी भगवान शिव को जल अर्पित कर रहे हैं, तो इस बात का जरूर ध्यान रखें कि आपका मुख किस तरफ है। इसलिए शिवलिंग में जल चढ़ाते समय पूर्व दिशा की ओर मुख न करें। क्योंकि इस दिशा को भगवान शिव का प्रवेश द्वार माना जाता है।इसलिए हमेशा उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही शिवलिंग में जल चढ़ाना चाहिए।
इस धातु से बने पात्र से जल करें अर्पित
कई लोगों का मानना कि किसी भी धातु से बने पात्र से शिवजी को जल चढ़ा सकते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। भगवान शिव को हमेशा तांबे के लोटे से ही जल चढ़ाना चाहिए। कभी भी स्टील के पात्र का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
इस जल शिवलिंग पर करें जल अर्पित
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव को कभी भी तेजी से जल नहीं अर्पित करना चाहिए अपितु धीरे-धीरे एक धार में जल अर्पित करना चाहिए। इससे शिवजी जल्द प्रसन्न होते हैं।
खड़े होकर न चढ़ाएं जल
सावन मास में मंदिरों में काफी भीड़ होती है। ऐसे में हर कोई खड़े होकर भी जलाभिषेक कर लेते हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इसलिए हमेशा बैठकर जलाभिषेक करना चाहिए।
शिवलिंग पर शंख से न चढ़ाएं जल
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव को शंख से जल चढ़ाने की मनाही होती है। क्योंकि भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक राक्षस का वध किया था। माना जाता है कि शंख इसी राक्षस से उत्पन्न हुआ है। इसी कारण भगवान शिव को शंख से जल कभी न चढ़ाएं।
Tara Tandi
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