धर्म-अध्यात्म

कामिका एकादशी करेगी सारे कष्ट दूर

Apurva Srivastav
12 July 2023 2:10 PM GMT
कामिका एकादशी करेगी सारे कष्ट दूर
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हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को बेहद ही खास माना जाता हैं जो कि हर माह के दोनों पक्षों में पड़ती हैं। एकादशी की तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु की प्रिय तिथियों में से एक मानी जाती हैं। जो कि श्री हरि की पूजा अर्चना को समर्पित होती हैं। अभी श्रावण मास का पावन महीना चल रहा हैं और इस माह पड़ने वाली एकादशी को कामिका एकादशी के नाम से जाना जा रहा हैं जो कि कल यानी 13 जुलाई दिन गुरुवार को मनाई जाएगी।
गुरुवार के दिन एकादशी का व्रत पड़ने से इस महत्व दोगुना हो गया हैं। ऐसे में इस दिन व्रत पूजन करने से साधक को दोगुने फल की प्राप्ति होती हैं। कामिका एकादशी के दिन जो भक्त सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं और व्रत आदि रखते हैं उन पर प्रभु की कृपा बरसती हैं लेकिन इसी के साथ ही कामिका एकादशी के दिन पूजन के बाद भगवान के प्रिय स्तोत्र अन्नत स्तव: का पाठ करने से जीवन के सभी कष्टों व दुखों का निवारण हो जाता हैं और सुख में वृद्धि होती हैं, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
अन्नत स्तव:
येनेदं जगदखिलं धृतं विधात्रा
विश्वं यज्जठरगतं युगान्तकाले ।
यो वेदानवति तमेत्य मत्स्यरूपं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्थनन्तम् ॥ १॥
यो लोकानसृजदनाद्यनन्तरूपो
विश्वात्मा विगततमोरजोभिरीड्यः ।
घृत्वेमां कमठवपुमेहीं सृजन्तं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ २॥
यः पृथ्वीमसुरभयाद्रसातलस्था-
मुद्धर्तुं खुरनिकरक्षतासुरौघः ।
वाराहीं तनुमभजत् त्रयीनिवास-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ३॥
हैरण्यं कुलिशदृढं पुरा नखाग्रै-
र्वक्षो यः सपदि विदारयाश्चकार ।
रह्लादप्रियहितकृन्नृसिंहरूप-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ४॥
स्वर्लोकस्थितिकरणाय यो धरित्री
त्रेधा विक्रमितुमयाचतासुरेशम् ।
भूत्वा वामनतनुरीश्वरं सुराणां
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ५॥
यः क्षत्रं निहितपरश्वधेन सर्वं
छित्वा तत्क्षतजजलेन कर्म पित्र्यम् ।
चक्रे विक्रमविभवैकसम्पदीड्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ६॥
यो लोकत्रयवनवह्निमीश्वराणा-
मीशानो दशवदनं रणे निहन्तुम् ।
रामो दाशरथिरभूदुदारवीर्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ७॥
यः पृथ्वीमसुरभरातिभङ्गुरार्ता-
मुद्धर्तुं मुसलहलायुधो बभूव ।
कालिन्दीकर्षणदर्शितातिवीर्य-
स्तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ८॥
कंसादींस्त्रिदशरिपूनपाचिकीर्षु-
र्यः पृथ्व्यामिह यदुनन्दनो वभूव ।
बालार्कयुतिविकसत्सरोजवक्त्रं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ ९॥
पाषण्डान् कलिकलुषीकृत स्वधर्मा-
निश्शेषं सपदि निराकरिष्णुरीशः ।
यः कल्की भवति नितान्तघोररूपं
तं देवं शरणमहं गतोऽस्म्यनन्तम् ॥ १०॥
। इति सुभद्राकृतः अनन्तस्तवः सम्पूर्णः ।
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