धर्म-अध्यात्म

दोष और भय को दूर करेगा कालाष्टमी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और मंत्र

Subhi
24 April 2022 2:46 AM GMT
दोष और भय को दूर करेगा कालाष्टमी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और मंत्र
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के पांचवें अवतार काल भैरव की पूजा विधि-विधान से करने के साथ व्रत रखा जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के पांचवें अवतार काल भैरव की पूजा विधि-विधान से करने के साथ व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि आज के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से हर तरह के भय, दुख, दरिद्रता से छुटकारा मिल जाता है। माना जाता है कि शिव जी के रुद्रावतार काल भैरव में भगवान ब्रह्मा और विष्णु जी की भी शक्ति समाहित है। जानिए वैशाख माह में पड़ने वाली इस कालाष्टमी के दिन कैसे करें काल भैरव की पूजा, साथ ही जानिए शुभ मुहूर्त, भोग और मंत्र।

कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि आरंभ- 23 अप्रैल, शनिवार, सुबह 6 बजकर 27 से शुरू

अष्टमी तिथि समाप्त- 24 अप्रैल सुबह 4 बजकर 29 मिनट पर

23 तारीख को उदयातिथि होने के कारण व्रत आज ही रखा जा रहा है।

साध्य योग- देर रात 01 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।

सर्वार्थ सिद्धि योग- शाम 06 बजकर 54 मिनट से शुरू होकर 24 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 47 मिनट

त्रिपुष्कर योग- सुबह 05 बकर 48 मिनट से शुरू होकर 24 अप्रैल को सुबह 06 बजकर 27 मिनट तक

कालाष्टमी व्रत की पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान आदि करके साफ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद काल भैरव के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। काल भैरव को हल्दी या कुमकुम का तिलक लगाकर इमरती, पान, नारियल आदि चीजों का भोग लगाएं। इसके बाद चौमुखी दीपक जलाकर आरती करें। रात के समय काल भैरव के मंदिर जाकर धूप, दीपक जलाने के साथ काली उड़द, सरसों के तेल से पूजा करने के बाद भैरव चालीसा, शिव चालीसा का पाठ करें। इसके साथ ही बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करना भी शुभ होगा।

काल भैरव की पूजा करने के बाद काले कुत्ते को कच्चा दूध या फिर मीठी रोटी खिलाएं।

काल भैरव मंत्र

धर्मध्वजं शङ्कररूपमेकं शरण्यमित्थं भुवनेषु सिद्धम्।

द्विजेन्द्र पूज्यं विमलं त्रिनेत्रं श्री भैरवं तं शरणं प्रपद्ये।।

काल भैरव गायत्री मंत्र

ओम शिवगणाय विद्महे।

गौरीसुताय धीमहि।

तन्नो भैरव प्रचोदयात।।


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