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धर्म-अध्यात्म
Kalashtami 2022 : चैत्र माह में कब है कालाष्टमी ? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
Kajal Dubey
24 March 2022 4:26 AM GMT
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कल शीतलाष्टमी के साथ-साथ कालाष्टमी भी है। प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनायी जाती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कल शीतलाष्टमी के साथ-साथ कालाष्टमी भी है। प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनायी जाती है। इस बार कालाष्टमी 25 मार्च को पड़ रही है। इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है। काल भैरव भगवान शिव का ही एक रूप हैं। इन्हें तंत्र-मंत्र का देवता भी माना जाता है। इस दिन विधि- विधान से भगवान भैरव की पूजा- अर्चना की जाती है। कहते हैं काल भैरव की साधना के बिना तंत्र साधनाओं में पूर्णतः सफलता नहीं मिल पाती। इनकी साधना से आपकी हर इच्छा पूरी होगी। आपके बिजनेस में बढ़ोतरी होगी। आपके मन की दुविधा दूर होगी और आपको कर्ज से भी मुक्ति मिलेगी।
शास्त्र में काल भैरव को भगवान शिव का गण और माता पार्वती का अनुचर माना गया है। हिंदू धर्म शास्त्रों में काल भैरव का बहुत महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार भैरव शब्द का अर्थ है भय को हराने वाला अर्थात जो उपासक काल भैरव की उपासना करता है, उसके सभी प्रकार के भय हर उठते हैं। ऐसी मान्यता है कि काल भैरव में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां समाहित रहती है। आइए जानते हैं कालाष्टमी व्रत की पूजा- विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में।
शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि आज रात 10 बजकर 4 मिनट तक रहेगी। आज देर रात 1 बजकर 47 मिनट तक वरीयान योग रहेगा। साथ ही आज शाम 4 बजर 7 मिनट तक मूल नक्षत्र रहेगा। आज श्री शीतला अष्टमी का व्रत किया जाएगा साथ ही आज कालाष्टमी भी है।
कालाष्टमी व्रत का महत्व
ऐसी मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा करने से सभी तरह के भय से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन व्रत करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है साथ ही भैरव भगवान की कृपा से शत्रुओं से छुटकारा मिल जाता है।
पूजा- विधि
कालाष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
उसके बाद भगवान भैरव की पूजा- अर्चना करें।
इस दिन भगवान भोलेनाथ के साथ माता पार्वती औरभगवान गणेश की भी विधि- विधान से पूजा- अर्चना करनी चाहिए।
फिर घर के मंदिर में दीपक जलाएं आरती करें और भगवान को भोग भी लगाएं।
इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाया जाता है।
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