धर्म-अध्यात्म

चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना, जानें शुभ मुहूर्त और आरती

Tara Tandi
6 April 2024 5:47 AM GMT
चैत्र नवरात्रि  पर कलश स्थापना, जानें शुभ मुहूर्त और आरती
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ज्योतिष न्यूज़ : हिंदू धर्म में नवरात्रि को बेहद ही खास माना गया है जो ​पूरे ​नौ दिनों तक चलता है इस दौरान मां दुर्गा के नौ अलग अलग स्वरूपों की विधिवत पूजा की जाती है और व्रत आदि भी रखा जाता है मान्यता है कि ऐसा करने से देवी की कृपा प्राप्त होती है इस साल चैत्र मास की नवरात्रि का आरंभ 9 अप्रैल से होने जा रहा है और इसका समापन 17 अप्रैल को हो जाएगा।
नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की नौ दिनों तक पूजा अर्चना करने से सुख समृद्धि आती है नवरात्रि के प्रथम दिन कलश स्थापना की जाती है तो आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा चैत्र नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और मां दुर्गा की आरती के बारे में बता रहे हैं तो आइए जानते हैं।
चैत्र नवरात्रि कलश स्थापना का मुहूर्त—
हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना करने का विधान होता है इस बार कलश स्थापना 9 अप्रैल दिन मंगलवार को की जाएगी। इस दिन घट स्थापना के लिए दो शुभ मुहूर्त प्राप्त हो रहे हैं जिसमें पहला मुहूर्त सुबह 6 बजकर 2 मिनट से 10 बजकर 16 मिनट तक है इसकी कुल अवधि 4 घंटे 14 मिनट तक रहेगी। इसके अलावा कलश स्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 57 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक है। यह अभिजीत मुहूर्त है इसका समय केवल 51 मिनट ही प्राप्त हो रहा है।
माता रानी की आरती—
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥ जय अम्बे…
माँग सिंदुर विराजत टीको मृगमदको।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥2॥ जय अम्बे.…
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्त-पुष्प गल माला, कण्ठनपर साजै ॥3॥ जय अम्बे…
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहरी ॥4॥ जय अम्बे…
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योती ॥5॥ जय अम्बे…
शुंभ निशुंभ विदारे, महिषासुर-धाती।
धूम्रविलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥ जय अम्बे…
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ॥7॥ जय अम्बे…
ब्रह्माणी, रूद्राणी तुम कमलारानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥8॥ जय अम्बे…
चौसठ योगिनि गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा औ बाजत डमरू ॥9॥ जय अम्बे…
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दुख हरता सुख सम्पति करता ॥10॥ जय अम्बे…
भुजा चार अति शोभित, वर मुद्रा धारी।
मनवाञ्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ॥11॥ जय अम्बे…
कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटिरतन ज्योती ॥12॥ जय अम्बे…
(श्री) अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी, सुख सम्पति पावै ॥13॥ जय अम्बे...
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