धर्म-अध्यात्म

कालभैरवाष्टमी 2020: काशी से उज्जैन तक ऐसी है भैरव की महिमा,जाने इसकी मान्यता

Deepa Sahu
7 Dec 2020 3:21 PM GMT
कालभैरवाष्टमी 2020: काशी से उज्जैन तक ऐसी है भैरव की महिमा,जाने इसकी मान्यता
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काल भैरव के इन मंदिरों के दर्शन से पूरी होती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क : काल भैरव के इन मंदिरों के दर्शन से पूरी होती है हर इच्छा- मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरवाष्टमी का पर्व देशभर मनाया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 7 दिसंबर यानी आज है। इस दिन भगवान शिव के रौद्र रूप कालभैरव की पूजा की जाती है। देवी मां के शक्तिपीठों में कालभैरव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मान्यता है कि आज के दिन ही भगवान शिव ने कालभैरव का अवतार लिया था। भय को दूर करने वाले को ही भैरव कहते हैं और इनकी पूजा-पाठ से नकारात्मकता, भय और अशांति दूर होती है। साथ ही तंत्र-मंत्र व साधना के लिए काल भैरव अष्टमी उत्तम मानी जाती है। कालभैरवाष्टमी के पावन पर्व पर हम आपको देशभर के कुछ काल भैरव मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी महिमा ऐसी है कि उस क्षेत्र में यमराज भी कदम नहीं रखते। आइए जानते हैं काल भैरव के मंदिरों के बारे में…

उज्जैन के काल भैरव
महाकाल की नगरी उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में कालभैरव का मंदिर स्थापित है। काल भैरव के इस मंदिर में प्रशाद के रूप मदिरा का पान करवाया जाता है। मंदिर का पुजारी भक्तों के प्रशाद को भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते ही देखते सबकी आंखों के सामने भगवान मदिरा का पान करते हैं। कहते हैं मदिरा का पता लगाने के लिए अंग्रेजों ने आसपास की जगह खुदाई करवाई लेकिन उनको आजतक पता नहीं चला कि यह मदिरा जाती कहां है। काल भैरव के इस मंदिर को 6000 साल पुराना बताया जाता है और वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर कहा जाता है। यहां पहले केवल तांत्रिक ही तंत्र-मंत्र व साधना करते थे लेकिन बाद अन्य भक्तों के लिए भी इस मंदिर को खोल दिया। इनके दर्शन के बिना महाकाल की पूजा अधूरी मानी जाती है।
दिल्ली के काल भैरव
दिल्ली के प्रगती मैदान के पास भी बटुक भैरव नाथ का मंदिर स्थित है। यहां भी प्रशाद के रूप में बाबा को मदिरा चढ़ाई जाती है। इस मंदिर को भीम ने स्थापित किया था। इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण में मिलता है। पुराण के अनुसार, इंद्रप्रस्थ में पांडवों के किले की रक्षा के लिए नारद मुनि ने पांडवों से काशी के कोतवाल को लाने के लिए। जिसे मानते हुए भीमसेन काशी पहुंचे और बटुक भैरव से प्रार्थना कर साथ चलने के लिए कहा। बटुक भैरव चलने को तैयार हो गए लेकिन एक शर्त भी रखी। बटुक भैरव ने भीम से कहा कि वह रास्ते में उनको जहां कहीं भी रखेंगे, वहीं विराजमान हो जाएंगे। भीम ने बटुक भैरव की शर्त को स्वीकार कर लिया। भीम अपने राज्य की सीमा तक बटुक भैरव को ले आए और तभी भैरव नाथ ने भीम की परिक्षा लेनी चाही। भीमसेन को अचानक प्यास लगी, जिससे अपने कंधे पर सवार भैरव नाथ को भीम ने उतारकर कुए की मुंडेर पर सुरक्षित रख दिया। जब चलने के भीमसेन ने फिर से बटुक भैरव को उठाया तो वह टस से मस नहीं हुआ अपनी शर्त के बारे में बताया। यह सुनकर भीम किले की सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गए। तब बटुक भैरव ने उनको अपनी जटाओं को उखाड़ कर दे दिया और कहा कि इससे किले पर कोई विपत्ति नहीं आएगी। पुराने किले पर यह मंदिर किलकारी भैरव नाथ मंदिर के नाम से मौजूद है।
काशी के काल भैरव
काशी में स्थिति कालभैरव मंदिर को काशी के कोतवाल कहा जाता है। यह मंदिर बाबा विश्वनाथ मंदिर से दो किमी की दूरी पर स्थित है। बाबा विश्वनाथ ने ही काल भैरव को काशी का कोतवाल बनाया था। मान्यता है कि यमराज भी यहां पर कदम नहीं रखते हैं। जिन लोगों की शरीर से आत्मा मुक्त होती है, उनके कर्मों की सजा और न्याय काल भैरव ही करते हैं। वह अपने सोठे से पाप का बोझ कम करके मुक्ति दिलाते हैं। इसलिए कहते हैं कि काशी में जिनकी मृत्यु होती है वह नरक नहीं जाते। वही पाप मुक्त होकर स्वर्ग में स्थान पाते हैं। इन्हीं काल भैरव ने ब्रह्माजी का पांचवा सिर काट दिया था, जिससे उनको ब्रह्म हत्या का पाप लगा। ब्रह्महत्या के पाप से प्रायश्चित करने के लिए काशी में तपस्या की और यहीं स्थापित हो गए। तब भगवान शिव ने काशी का कोतवाल बनने को कहा।
नैनिताल के गोलू देवता
नैनिताल के पास घोड़ा खाड़ का बटुक भैरव मंदिर का फी प्रसिद्ध है। यहां यह गोलू देवता के नाम से प्रसिद्ध है। मंदिर में स्थित श्वेत गोल प्रतिमा के दर्शन के लिए कई लोग आते हैं। मान्यता है कि यहां सच्चे मन से जो भी प्रार्थना करता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है और फिर बाद मंदिर घंटी बांधकर जाते हैं। यहां बंध रही अनगिनत घंटियां इसका प्रमाण हैं। मंदिर में माता काली का भी मंदिर स्थित है।
जोधपुर के नाकोड़ा भैरव
राजस्थान के जोधपुर जिले में नाकोड़ा भैरव मंदिर स्थित है। यहां जैन समाज के 23वें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के साथ भैरवनाथ विराजमान हैं। बटुक भैरव की इच्छा से ही यहां भैरवनाथ की मूर्ति स्थापित कई गई थी। एक सुंदर बालक ने गुरुदेव हिमाचल सुरीश्वरजी को दर्शन देकर यहां भैरव नाथ की प्रतिमा लगाने के लिए कहा था तब से यहां हर रोज कई भक्त दर्शन के लिए आते हैं और मनवांछित फल पाते हैं।


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