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धर्म-अध्यात्म
Jivitputrika Vrat 2021 : आश्विन मास में जीवित्पुत्रिका व्रत कब है ? जानिए शुभ मुहूर्त, कथा, पूजा विधि
Renuka Sahu
15 Sep 2021 1:59 AM GMT
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फाइल फोटो
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास सातवा महीना होता है. इस महीने में कई व्रत और त्योहार पड़ते हैं. इनही में से जीवित्पुत्रिका व्रत होता है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आश्विन मास सातवा महीना होता है. इस महीने में कई व्रत और त्योहार पड़ते हैं. इनही में से जीवित्पुत्रिका व्रत होता है. इस व्रत को जितिया भी कहते हैं. ये व्रत हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है. इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है.
इस बार जितिया का व्रत 29 सितंबर 2021 को पड़ रहा है. जीतिया का व्रत पुत्र कल्याण की कामना से रखा जाता है. इस व्रत को गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन के नाम रखा गया है. आइए जानते हैं जितिय व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.
जीवत्पुत्रिका व्रत शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 28 सितंबर के दिन मंगलवार को शाम के समय 06 बजकर 16 मिनट पर हो रहा है. इस तिथि का समापन 29 सितंबर को रात के 08 बजकर 29 मिनट पर होगा. उदया तिथि के कारण इस व्रत को 29 सितंबर को रखा जाएगा. 29 सितंबर के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती है और अगले दिन 30 सिंतबर को सुबह उठकर स्नान और पूजा के बाद व्रत का पारण कर सकती है. शास्त्रों के अनुसार, सूर्योदय के बाद का पारण शुभ माना जाता है. मान्यता है कि बिना पारण किए कोई व्रत पूजा पूरी नहीं मानी जाती है.
जीवत्पुत्रिका व्रत कैसे रखते है
जितिया का व्रत सबसे कठिन व्रत माना जाता है. इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं अपनी संतान के लिए निर्जला उपवास रखती हैं. इस व्रत में सप्तमी के दिन नहाया खाए के बाद अष्टमी से लेकर नवमी तिथि के दिन पारण करती है. सप्तमी तिथि वाले दिन महिलाएं सूर्यास्त के बाद से कुछ नहीं खाती हैं. महिलाएं सप्तमी के दिन नहाए- खाए के बाद से निर्जला उपवास करती हैं और नवमी तिथि को व्रत का समापन करती हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को पुनर्जीवित कर दिया था. तब से स्त्रियां आश्विन नास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं. माना जाता है कि जो महिलाएं इस व्रत को पूरी आस्था के साथ रखती हैं उनके संतान की रक्षा भगवान कृष्ण करते हैं. इस व्रत के फल स्वरूप संतान को दीर्घआयु, आरोग्य और सुखी जीवन प्राप्त होता है.
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