धर्म-अध्यात्म

जीवित्पुत्रिका व्रत इस दिन, जाने विशेष पूजा विधि

Subhi
12 Sep 2022 3:30 AM GMT
जीवित्पुत्रिका व्रत इस दिन, जाने विशेष पूजा विधि
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जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र के जीवन की रक्षा करने के उद्देश्य से करती हैं. इस बार यह व्रत 18 सितंबर 2022 को रविवार के दिन होगा. महिलाएं इस व्रत को निर्जला रहकर करती हैं. 24 घंटे के उपवास के बाद ही व्रत का समापन करती हैं.

जीवित्पुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को किया जाता है. इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र के जीवन की रक्षा करने के उद्देश्य से करती हैं. इस बार यह व्रत 18 सितंबर 2022 को रविवार के दिन होगा. महिलाएं इस व्रत को निर्जला रहकर करती हैं. 24 घंटे के उपवास के बाद ही व्रत का समापन करती हैं.

यह है व्रत की पूजन विधि

सप्तमी के दिन उड़द की दाल भिगोई जाती है. कुछ स्थानों पर इसमें गेहूं भी मिला दिया जाता है. अष्टमी के दिन प्रातः काल व्रती महिलाएं, उनमें से कुछ दाने साबुत ही निगल जाती हैं. इसके बाद वह न तो कुछ खाती हैं और न ही कुछ पीती हैं. इस दिन उड़द और गेहूं के दाने का बहुत महत्व है.

जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा

महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों की अनुपस्थिति में अश्वत्थामा ने उनके शिविर में प्रवेश किया और अनेकों सैनिकों को मारने के बाद शिविर में सोए पांच युवकों को पांडव मानकर मार दिया और उनके सिर काट लिए. दूसरे दिन अर्जुन ने अश्वत्थामा का पीछाकर बंदी बना लिया. धर्मराज युधिष्ठिर के आदेश और श्रीकृष्ण के परामर्श से गुरु पुत्र अश्वत्थामा के माथे से मणि लेकर उसके बालों को कटवाकर उसे बंधन मुक्त कर दिया.

अपने अपमान का बदला लेने के भाव से अश्वत्थामा ने अमोघ अस्त्र का प्रयोग अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर किया, ताकि पांडवों का वंश ही समाप्त हो जाए. अमोघ अस्त्र चलने पर पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली तो उन्होंने भी शरणागत की रक्षा का वचन दिया. इसके बाद अति सूक्ष्म रूप में उत्तरा के पेट में प्रवेश कर उसके गर्भ की रक्षा की, किंतु जब पुत्र पैदा हुआ तो वह मृतप्राय था. घर वाले तो दुख और निराशा में फंसे थे, तभी श्रीकृष्ण ने वहां पहुंचकर उस बालक में प्राणों का संचार किया. वही पुत्र पांडवों का वंशधर परीक्षित के नाम से जाना गया. परीक्षित को इस प्रकार से जीवनदान देने के कारण ही इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा.


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