धर्म-अध्यात्म

जया एकादशी की व्रत कथा और महत्व

Subhi
7 Feb 2022 2:33 AM GMT
जया एकादशी की व्रत कथा और महत्व
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12 फरवरी को जया एकादशी है। यह हर वर्ष माघ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-उपासना की जाती है। पद्म पुराण में निहित है

12 फरवरी को जया एकादशी है। यह हर वर्ष माघ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा-उपासना की जाती है। पद्म पुराण में निहित है कि जया एकादशी व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों और अधम योनि से मुक्ति मिलती है। साथ ही जीवन में सभी भौतिक और अध्यातमिक सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महत्ता के बारे में अर्जुन को बताया है। भगवान कहते हैं-नीच से नीच और अधम योनि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भी जया एकादशी व्रत करने से मरणोंपरात मोक्ष की प्राप्ति मिलती है। आइए, इस व्रत की कथा और लाभ जानते हैं-

जया एकादशी व्रत कथा

चिरकाल में एक बार स्वर्ग में स्थित नंदन वन में उत्स्व का आयोजन किया जा रहा था। इस उत्स्व में सभी देवगण, सिद्धगण एवं मुनि उपस्थित थे। उस समय उत्स्व में नृत्य और गायन का कार्यक्रम चल रहा था। नृत्य और गायन गन्धर्व और गन्धर्व कन्याएं कर रहे थे। उसी समय नृतका पुष्यवती की दृष्टि माल्यवान पर पड़ गई। माल्यवान के यौवन पर नृतका पुष्यवती पर मोहित हो गई।

इससे नृतका पुष्यवती अपनी सुध खो बैठी और अमर्यादित ढ़ंग से नृत्य करने लगी। वहीं, माल्यावान बेसुरा होकर गाने लगा। इससे सभा में उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो उठे। यह देख स्वर्ग नरेश क्रोधित हो उठे और उन्होनें दोनों को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया। साथ ही यह श्राप दिया कि दोनों को अधम योनि प्राप्त होगी। कालांतर में में दोनों को पिशाच बनकर जीवन व्यतीत करना पड़ा। जया एकादशी के दिन अज्ञात रुप से दोनों ने व्रत कर लिया। साथ ही दु:ख और भूख के चलते दोनों ने रात्रि जागरण भी किया। इस दौरान दोनों ने श्रीहरि का स्मरण और सुमरन किया। दोनों की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान नारायण ने पुष्यवती और माल्यावान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया।


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