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जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक समय की बात है एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था. एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार स्वरूप प्रदान किया.
राजा पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ और उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया.
महामंत्री गांव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे पत्थर देते हुए बोला, महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं. सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुंचा देना. इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जाएंगी.
5. स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार खुश हो गया और महामंत्री के जाने के बाद प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए. अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा. लेकिन पत्थर जस का तस रहा.मूर्तिकार ने हथौड़े के कई बार पत्थर पर वार किए, लेकिन पत्थर नहीं टूटा.
पचास बार प्रयास करने के बाद मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, लेकिन ये सोचकर रुक गया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा तो अब क्या टूटेगा. वो पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है, इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती.
महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था. इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गांव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया. पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वो पत्थर एक बार में ही टूट गया.
पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया. इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता तो सफल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का वो हकदार होता.
ऐसा ही कई बार हम सब के साथ भी होता है. कई बार हम मंजिल के बिल्कुल करीब होते हैं, लेकिन हिम्मत हार जाने की वजह से वो मंजिल हमें नहीं मिल पाती. इसलिए अपनी उम्मीदों को बनाए रखिए और लगातार प्रयास करते रहिए. आज नहीं तो कल, मंजिल जरूर मिलेगी.