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जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक राजा के राज्य में अकाल पड़ा तो राजकोष खाली होने लगा. लोग लगान नहीं दे पा रहे थे जिसकी वजह से राजकोष का धन खर्च होने लगा था. इससे राज बेहद दुखी रहने लगे थे. कुछ समय बाद हालात सामान्य हुए लेकिन राजा के राजकोष में धन नहीं बढ़ रहा था. इस बीच राजा को खबर मिली की उसके राज्य पर कुछ शत्रु हमला करने वाले है. ये बात जानकर राजा की परेशानी और ज्यादा बढ़ गई. राजा ने अपने महल में कुछ लोगों को षडयंत्र करते हुए पकड़ लिया. इन सभी कारणों की वजह से राजा के जीवन से सुख- शांति गायब हो गई थी.
राजा ने एक दिन अपने सेवक को देखा कि वह शाही बाग की देखभाल करता है और सुबह – शाम पेटभर के सूखी रोटियां खाता था. लेकिन उसके चेहरे पर प्रसन्नता रहती थी. यह सब देखकर राजा को जलत होती थी. वह सोचता थे कि सेवक से अच्छा तो मेरा जीवन है लेकिन इसे कोई चिंता नहीं है. अपना काम किया और सुबह- शाम पेटभर खाकर आराम करता है. वहीं मेरी तो भूख भी मर गई है और नींद भी उड़ गई है.
एक दिन राजा के महल में प्रसिद्ध साधु आए. राजा ने उनका आदर सत्कार किया. संत राजा के सेवा भाव से बहुत प्रसन्न हुए. राजा ने संत को अपनी चिंता का कारण बताया. संत ने कहा, तुम्हारी चिंता का कारण ये राजपाठ है. तुम ये राजपाठ मुझे दे दो और सभी परेशानियों से मुक्ति हो जाओ.
संत की बात सुनकर राजा मान गया. उन्होंन संत को राजा घोषित कर दिया. फिर संत ने कहा कि अब तुम क्या करोगे. राजा ने कहा मेरे पास तो धन नहीं है. मैं कही नौकरी करूंगा. संत ने कहा कि तुम यही मेरे राज्य का संचालन करो. तुम्हें अनुभव भी है. मैं तो अपनी कुटिया में ही रहूंगा और तुम मेरा राज्य संभालों. राजा इसके लिए तैयार हो गया. अब राजा चिंता मुक्त होकर राज्य को संभालने लगा. वह पेटभर भोजन भी करता था और नींद भी आने लगी थी. अब राजा को चिंता नहीं थी कि राज्य का क्या होगा क्योंकि राजा तो संत था.
कुछ समय बाद संत अपने महल आए. तब राजा ने कहा, महाराज अब मैं बहुत खुश हूं. संत ने कहा कि राजन तुम पहले भी यही करते थे लेकिन उस समय तुमने इस काम को बोझ मान लिया था. अब तुम अपने काम को कर्तव्य मानकर कर रहे हो. इसलिए तुम प्रसन्न हो और तुम्हारी सभी चिंताएं भी दूर हो गई.