धर्म-अध्यात्म

साल के आखिरी दिन है शुक्र प्रदोष में जरूर करें शिव लिंगाष्टकम् का पाठ

Subhi
29 Dec 2021 2:55 AM GMT
साल के आखिरी दिन है शुक्र प्रदोष में जरूर करें शिव लिंगाष्टकम् का पाठ
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भगवान शिव के पूजन को समर्पित प्रदोष का व्रत साल के अंतिम दिन पड़ रहा है। इस दिन शुक्रवार होने के कारण ये शुक्र प्रदोष का संयोग है। पौष माह का प्रदोष व्रत 31 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है।

भगवान शिव के पूजन को समर्पित प्रदोष का व्रत साल के अंतिम दिन पड़ रहा है। इस दिन शुक्रवार होने के कारण ये शुक्र प्रदोष का संयोग है। पौष माह का प्रदोष व्रत 31 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ रहा है। नये साल में प्रवेश करने के पहले आशुतोष भगवान शिव का व्रत और पूजन करने के शुभ संयोग का निर्माण हुआ है।इस दिन शिव पूजन करने से आने वाले वाला साल शुभ और मंगलकारी होगा। प्रदोष का दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम दिन माना गया है। इस दिन सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से 45 बाद तक के प्रदोष काल में शिव पूजन करना चाहिए। ऐसा करने भगवान शिव अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और कामनाओं की पूर्ति करते हैं।

साल के आखिरी दिन प्रदोष व्रत में भगवान शिव के लिंगाष्टकम् का पाठ करना उत्तम होगा। इस दिन फलाहार व्रत रख कर, प्रदोष काल में शिव पूजन करें। पूजन में शिव लिंग का जलाभिषेक करते हुए शिव लिंगाष्टकम् का पाठ करें। ऐसा करने से सभी प्रकार के रोग दोष दूर होते हैं और नये साल में जीवन में सुख -संमृद्धि की प्राप्ति होती है।
शिव लिंगाष्टकम् -
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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