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बड़े संकल्पों को पूरा करने का आत्मविश्वास जगाना जरुरी, छत्रपति शिवाजी महाराज
जनता से रिश्ता बेवङेस्क | बात उन दिनों की है जिन दिनों छत्रपति शिवाजी महाराज मुगलों के विरुद्ध छापामार युद्ध लड़ रहे थे। एक दिन रात को वे थके-मांदे एक वनवासी बुढ़िया की झोंपड़ी में पहुंचे। उन्होंने कुछ खाने के लिए मांगा। बुढ़िया के घर में केवल चावल थे, सो उसने प्रेमपूर्वक भात पकाया और उसे ही परोस दिया। शिवाजी बहुत भूखे थे, सो झट से भात खाने की आतुरता में उंगलियां जला बैठे। हाथ की जलन शांत करने के लिए फूंकने लगे। यह देख बुढ़िया ने उनके चेहरे की ओर गौर से देखा और बोली सिपाही तेरी सूरत शिवाजी जैसी लगती है और साथ ही यह भी लगता है कि तू उसी की तरह मूर्ख है।
शिवाजी स्तब्ध रह गए। उन्होंने बुढ़िया से पूछा, ''भला शिवाजी की मूर्खता तो बताओ और साथ ही मेरी भी।''
बुढ़िया ने उत्तर दिया, ''तूने किनारे-किनारे से थोड़ा-थोड़ा ठंडा भात खाने की अपेक्षा बीच के सारे भात में हाथ डाला और उंगलियां जला लीं। यह मूर्खता शिवाजी करता है। वह दूर किनारों पर बसे छोटे-छोटे किलों को आसानी से जीतते हुए शक्ति बढ़ाने की अपेक्षा बड़े किलों पर धावा बोलता है और हार जाता है।''
शिवाजी को अपनी रणनीति की विफलता का कारण पता चल गया। उन्होंने बुढ़िया की सीख मानी और पहले छोटे लक्ष्य बनाए और उन्हें पूरा करने की रीति-नीति अपनाई। इस प्रकार उनकी शक्ति बढ़ी और अंतत: वे बड़ी विजय पाने में समर्थ हुए। शुभारंभ हमेशा छोटे-छोटे संकल्पों से होता है, तभी बड़े संकल्पों को पूरा करने का आत्मविश्वास जागृत होता है।