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धर्म-अध्यात्म
ऐसी मान्यता है कि फुलेरा दूज भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, फुलेरा दूज पर करें ये उपाय
HARRY
14 March 2021 11:16 AM GMT
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मांगलिक कार्यों के लिए ये दिन अत्यंत ही शुभ माना गया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 2021 में फुलेरा दूज 15 मार्च को है। विवाह करने के लिए ये दिन शुभ माना गया है। फाल्गुन मास में आने वाला ये त्योहार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी को समर्पित है। इस पर्व को होली पर्व का शुभारंभ भी माना जाता है। कई लोग इस दिन व्रत भी रखते हैं। मांगलिक कार्यों के लिए ये दिन अत्यंत ही शुभ माना गया है।
कैसे मनाते हैं फुलेरा दूज? फुलेरा दूज के दिन घरों में और मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। पूजा के समय भगवान कृष्ण को होली पर खेला जाने वाला गुलाल अर्पित किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण और राधा जी की मूर्तियों को फूलों से सजाया जाता है। कई जगह इस दिन फूलों की रंगोली भी बनायी जाती है। इस पर्व की खास रौनक ब्रजभूमि और मथुरा के मंदिरों में देखने को मिलती है। सारे धाम को फूलों से सजाया जाता है। लोग एक दूसरे के साथ फूलों से ही होली खेलते हैं। इस दिन से होली तक यह धूमधाम लगातार जारी रहती है। मंदिरों में श्री कृष्ण का कीर्तन किया जाता है।
फुलेरा दूज पर करें ये उपाय: इस पवित्र दिन पर राधा रानी को श्रृंगार की वस्तुएं जरूर अर्पित करें और उनमें से श्रृंगार की कोई एक वस्तु अपने पास संभाल कर रख लें। मान्यता है कि ऐसा करने से जल्द विवाह हो जाता है।
गुलरियों बनाने का भी है रिवाज: होलिका दहन में गोबर से बने उपलों को जलाने की परंपरा है। गाय के गोबर के छोटे-छोटे उपले बनाकर एक माला तैयार कर ली जाती है। फिर इस माला को होलिका दहन वाले दिन अग्नि में डाल देते हैं। इसे ही गुलरियां कहते हैं। जिनको बनाने का काम फुलेरा दूज से शुरू हो जाता है।
फुलेरा दूज की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, कई दिनों से किसी कारण भगवान श्रीकृष्ण राधा जी से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे। राधा को दुखी देख गोपियां भी श्रीकृष्ण से रूठ गईं। राधा के दुखी होने से मथुरा के वन सूखने लगे और सभी फूल मुरझा गए। वनों की ऐसी स्थिति के बारे में जब भगवान श्रीकृष्ण को पता चला तो वह राधा से मिलने वृंदावन गए। श्रीकृष्ण के आगमन से राधा रानी प्रसन्न हो गईं और चारों ओर हरियाली छा गई। कृष्ण ने खिले हुए पुष्प को तोड़ा और राधा को छेड़ने के लिए उन पर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया। ऐसा देखकर वहां मौजूद सभी गोपियों और ग्वालों ने भी एक-दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए। कहते है कि तभी से फुलेरा दूज की शुरुआत हो गई और हर साल मथुरा में फूलों की होली खेली जाने लगी।
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