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ज्योतिष शास्त्र विज्ञान है या अंधविश्वास, ये बता सकता है कि आपकी संतान डॉक्टर बनेगी या इंजीनियर

Shiddhant Shriwas
3 July 2021 9:47 AM GMT
ज्योतिष शास्त्र विज्ञान है या अंधविश्वास, ये बता सकता है कि आपकी संतान डॉक्टर बनेगी या इंजीनियर
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क्या कोई ज्योतिष आपकी संतान की जन्मकुंडली देख कर यह बता सकता है कि वो डॉक्टर बनेगी या इंजीनियर? लेखक, वैज्ञानिक बनेगी या आईएएस

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। क्या कोई ज्योतिष आपकी संतान की जन्मकुंडली देख कर यह बता सकता है कि वो डॉक्टर बनेगी या इंजीनियर? लेखक, वैज्ञानिक बनेगी या आईएएस? क्या ग्रह और नक्षत्रों का इंसान की जिंदगी पर प्रभाव पड़ता है ? क्या इंसान की जन्मराशि, उसके हाथ की लकीरें किसी को मुकद्दर का सिकंदर बना सकती है ? क्या कोई टैरो कार्ड्स रीडर के कार्ड्स में इंसान की ज़िंदगी के राज़ छुपे होते हैं ? अपनी तक़दीर की तस्वीर इंसान पहले से ही देख लेना चाहता है. अपने फ़्यूचर की पिक्चर इंसान पहले ही जान लेना चाहता है. यही वजह है कि इंसान जन्मकुंडली विशेषज्ञों, हस्तरेखा विशेषज्ञों, टैरो कार्ड रीडरों, अंक गणित शास्त्रियों, नाड़ी ज्योतिषियों के पास जाता है.

लेकिन किसी चीज़ को बहुत से लोग मानने लग जाते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उस ज्ञान को हम विज्ञान मान लें. विज्ञान साबित होने के लिए जिस तरह की एक्यूरेसी चाहिए, क्या ज्योतिष शास्त्र उस पर खरा उतरता है ? दुनिया का पहला साइंस यानी एस्ट्रॉनॉमी सब्जेक्ट से एस्ट्रॉलॉजी का अस्तित्व सामने आया है, देखना यह पड़ेगा कि यह उस सब्जेक्ट की कसौटी पर खरा उतरता है? आज एस्ट्रॉनॉमी इतना सटीक है कि उसकी जानकारियों के आधार पर हम चांद और मंगल तक पहुंचने में कामयाब हो गए. लेकिन अगर इस विज्ञान की एक्यूरेसी में आधा प्रतिशत का भी अंतर आ जाता है तो हमारा रॉकेट चांद पर नहीं उतर पाता है. क्या जो एक्यूरेशी आज खगोल विज्ञान ने प्राप्त कर ली है क्या उस स्तर की सटीक भविष्यवाणी आज ज्योतिष शास्त्र कर पाता है? और लगातार कर पाता है? यह एक अहम सवाल है.
ग्रहों और नक्षत्रों के वजूद को झुठला नहीं सकते, उनके असर पर सवाल क्यों ?
जो लोग यह तर्क देते हैं कि चंद्रमा जैसे उपग्रह की वजह से जब इतने बड़े समंदर में ज्वार-भाटा आ सकता है, तो इंसान की ज़िंदगी पर बड़े-बड़े ग्रहों का प्रभाव भी निश्चित ही पड़ता होगा. जवाब में संदेह करने वाले कहते हैं कि प्रभाव तो पड़ता है. प्रभाव से इंकार नहीं है. लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि ज्योतिषी उस प्रभाव को प्रामाणिकता से देख पाए या जान पाए.
इसके जवाब में अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक और ऑर्गनाइजर श्याम मानव Tv9 भारतवर्ष डिजिटल से बात करते हुए कहते हैं कि पूरी पृथ्वी में दो तिहाई समुद्र है, तब जाकर उसमें चंद्रमा से आकर्षित होकर ज्वार या लहरों के रूप में पानी ऊपर उठता है. इसमें आश्चर्य की बात क्या है? आप अपने घर में थाली में ऐसे ही पानी भर के रखिए, क्या उसमें चंद्रमा के आकर्षण से पानी उछलता है? जवाब है नहीं. इसी तरह इंसान के शरीर में समंदर के मुकाबले कितना पानी है? एक तो अलग-अलग राशियों पर ग्रहों का अलग-अलग प्रभाव मानने का कोई ठोस तर्क नहीं है. दूसरा अगर इंसान पर कोई प्रभाव पड़ता भी है तो इतना सूक्ष्म होता है कि उसकी कोई खास अहमियत नहीं होती.
हमेशा विज्ञान भी सही नहीं होता, फिर ज्योतिष पर ही इल्ज़ाम क्यों ?
ज्योतिष शास्त्र के पक्ष में कहा जाता है कि फीजिक्स में भी लॉ ऑफ प्रोबैबिलिटी का सिद्धांत काम करता है. केमिस्ट्री में भी जब सेट फॉर्मूला के तहत चीजें सामने नहीं आतीं तो उसे एक्सेप्शन मान लिया जाता है. तब विज्ञान से जुड़े विषयों को तो अंधविश्वास नहीं कहा जाता लेकिन अगर कोई भविष्यवाणी सटीक नहीं बैठती है तो तुरंत ज्योतिष को अंधविश्वास बता दिया जाता है. यह ज्योतिष विज्ञान के साथ भेदभाव है.
विज्ञान बिना तथ्य या कारण किसी बात को सही या गलत नहीं ठहराता
इस सवाल के जवाब में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई से जुड़े वैज्ञानिक बाल फुंडके Tv9 भारतवर्ष डिजिटल से बात करते हुए स्टैटिस्टिकल सिग्निफिकेंस का सवाल उठाते हैं. और श्याम मानव उनका समर्थन करते हुए कहते हैं कि लॉ ऑफ प्रोबैबिलिटी का मतलब आंख बंद करके किसी चीज को अध्ययन का विषय मान लेना नहीं होता. अगर इस लॉ के हिसाब से 100 में से 30 से 70 प्रतिशत तक कोई बात सही या गलत साबित हो रही है तभी उसे अध्ययन का विषय माना जाता है. ऐसा ज्योतिषियों के साथ नहीं है. ज्योतिष में तो 20 प्रतिशत तक भी एक्यूरेसी नहीं है.
आगे वे कहते हैं कि अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की ओर से मेरा ज्योतिषियों को यह चैलेंज है कि मैं दस कुंडिलियां दस ज्योतिषियों के पास भेजूंगा. अगर लॉ ऑफ प्रोबैबिलिटी के हिसाब से तीन ज्योतिषी भी उनमें से ये बता दें कि कौन सी कुंडली जीवित व्यक्ति की है या मृत व्यक्ति की, या उन कुंडलियों में पांच ऐसी बातें सही-सही बता दें, जिन्हें जांचा जा सके तो मैं अपनी संस्था की ओर से 30 लाख रुपए इनाम की घोषणा करता हूं.
आधे-अधूरे विज्ञान से कोई समाधान नहीं मिलता, संभ्रम फैलता है
जो लोग ज्योतिष विज्ञान को विज्ञान कहे जाने पर आपत्ति उठाते हैं उनका यह भी तर्क है कि ज्योतिष शास्त्र के जानकार उन्हीं 9 ग्रहों और 12 राशियों की चाल के आधार पर अपना निष्कर्ष देते हैं, जिनकी हमें जानकारी है. लेकिन अंतरिक्ष में तो हर रोज़ अनगिनत घटनाएं हो रही होती हैं. उनके असर का अनुमान लगाने की स्थिति में ज्योतिष विज्ञान नहीं है. आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर भविष्य कथन कहीं से भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है, यह आस्था भी नहीं है, सीधा-सीधा अंधविश्वास है.
BARC वैज्ञानिक बाल फुंडके पद्मविभूषण से सम्मानित वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर का हवाला देकर बताते है कि एक बार उन्होंने 20 मानसिक रूप से अस्वस्थ और 20 अलग-अलग विषयों के स्कॉलर्स की जन्मकुंडलियां 40 से ज्यादा ज्योतिषियों को भेजीं तो ज्यादातर ज्योतिषी यह बताने में असफल रहे कि कौन मानसिक रूप से अस्वस्थ बच्चों की कुंडली है और कौन विद्वान लोगों की कुंडलियां हैं. इस तरह से इस प्रयोग में सिर्फ 20 प्रतिशत फलादेश सही साबित हुआ. 80 प्रतिशत गलत साबित हुए.
गलतियां तो मौसम विज्ञानी भी करते हैं, फिर ज्योतिषियों पर ही सवाल क्यों?
ज्योतिष विज्ञान के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि मौसम विभाग के कहे मुताबिक कितनी बार बरसात होती है? तो उनके विषयों को तो अवैज्ञानिक और अंधविश्वास नहीं बताया जाता, ज्योतिष विज्ञान को अवैज्ञानिक बताने के लिए इतनी उत्सुकता क्यों ?
इसके जवाब में अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के श्याम मानव कहते हैं कि मौसम विज्ञान आज से 20 साल पहले जो गलतियां करता था, अब नहीं करता. वे हाल ही में ताउते का उदाहरण देकर बताते हैं कि मौसम विज्ञानियों ने इस तूफान का अनुमान लगा लिया था. यही वजह है कि सरकार महाराष्ट्र के कोकण, कर्णाटक, केरल और गुजरात के समुद्र तटीय इलाकों के लोगों को कहीं और स्थानान्तरित करने में सफल हुई और हजारों लोगों की जान-माल की हानियों को रोका गया. मौसम विज्ञान का रिसर्च अगर गलत होता भी है तो ज्यादातर मॉनसून के संबंध में होता है. मॉनसून अपने आप में अनप्रेडिक्टेबल है. जबकि मौसम विज्ञान अब इस विषय में भी सटीक होने लगा है. इस बार मॉनसून का भी सही-सही अंदाज़ बताया था, जैसा बताया था, वैसा ही मॉनसून का रुख कायम है.
जब सब कुछ कुंडली के हिसाब से हो रहा है तो कर्म का महत्व क्या?
कुंडली विशेषज्ञों और हस्तरेखा विशेषज्ञों का कहना है कि ज्योतिष संभावनाओं की तलाश करता है. जैसे अगर किसी जमीन के नीचे आम का बीज पड़ा है, तो पेड़ और पौधों और मिट्टियों का जानकार यह बता सकता है कि कुछ सालों बाद जब यह बीज पेड़ बनेगा तो इसमें आम फलेंगे. लेकिन अगर उस पौधे की रोज़ सिंचाई ना हो, तो वो पौधा सूख जाएगा. तो क्या उस व्यक्ति को पकड़ा जाए जिसने कहा था कि एक दिन इस पेड़ में आम फलेंगे?
यानी अगर किसी की कुंडली में डॉक्टर या इंजीनियर, आईएएस, वैज्ञानिक, लेखक या कुछ और बनने की संभावनाएं हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उसका वह बनना निश्चित है. यहां कर्म का महत्व आता है. यानी आपके पास रखी हुई थाली में लड्डू पड़े हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वे लड्डू गप्प से अपने-आप आपके मुंह के अंदर चले जाएंगे. आपको हाथ लगाकर थाली से उस लड्डू को अपने मुंह तक ले जाना पड़ेगा. बहुत कुछ कर्म पर भी निर्भर करता है. इसलिए ज्योतिष शास्त्र के जानकारों का कहना है कि अनुमानों के सटीक ना बैठने पर सिर्फ ज्योतिषियों को जिम्मेदार ठहरा देना कहीं से भी उचित नहीं.
भाग्य इंजीनियर या डॉक्टर बनाता है, कर्म कामयाबी का मीटर बढ़ाता-घटाता है
कर्म की अहमियत ऐसे भी बताई जा सकती है कि किसी व्यक्ति को एक मैकेनिक, फीटर, फोरमैन या मैकेनिकल इंजीनियर बनाने के लिए एक जैसे ग्रह जिम्मेदार होते हैं. अब यहां उसका कर्म होता है कि कोई स्टूडेंट अगर कम पढ़ता है तो डिप्लोमा इंजीनियर बन कर रह जाता है कोई ज्यादा मेहनत करता है तो बी-टेक कर पाता है. यानी जिस तरह किसी बल्ब का काम तो रौशनी देना है. अगर कम वोल्टेज में बिजली सप्लाई होगी तो रौशनी कम होगी और ज्यादा वोल्टेज में बिजली सप्लाई होगी तो रौशनी ज्यादा होगी.
सभी अलग-अलग राह दिखाते हैं, किसको सही मानें?
लेकिन इसके जवाब में तर्क है कि एक जैसे ही कर्म करने वाले और एक जैसी कुंडली में चार अलग-अलग ज्योतिषी चार अलग-अलग बातें बताते हैं. फलादेश यानी प्रेडिक्शन में एकरूपता नहीं होती. इतना ही नहीं एक ही विधा के चार ज्योतिषी तो अलग-अलग मत देते ही हैं, ज्योतिषी की अलग-अलग विधाओं के विशेषज्ञ भी अलग-अलग बातें बताते हैं. अंकशास्त्री कुछ और कहते हैं, हस्तरेखा विशेषज्ञ कुछ और कहते हैं. कुंडली विशेषज्ञ कोई तीसरी बात बताते हैं. ऐसे में किसे सच मानें?
इसके जवाब में ज्योतिषियों का तर्क है कि अगर फलादेश देने वाला गलत साबित होता है, फल कथन करने वालों में मतभेद या मतांतरण होता है तो इसका मतलब यह नहीं कि ज्योतिष शास्त्र गलत है. दरअसल कई बार फल कथन में जो त्रुटियां आती हैं उसकी एक वजह यह है कि राज्याश्रय के अभाव में इसमें मध्यकाल के बाद कोई ठोस रिसर्च नहीं हुआ. किसी भी विषय पर लगातार रिसर्च होते रहना जरूरी होता है, तभी उसकी प्रासंगिकता बनी रहती है. आज कल जो लोग ज्योतिषशास्त्र से जुड़े हैं, दरअसल वे लोग ज्योतिष शास्त्री नहीं बल्कि एस्ट्रो रीडर हैं. वे सिर्फ पहले किए हुए रिसर्च को पढ़ कर फलादेश कर रहे हैं. वे कोई नया शोध या अनुसंधान नहीं कर रहे. अगर इस पर गंभीर अनुसंधान जारी रहे, तो धीरे-धीरे इन शंकाओं का समाधान हो सकेगा.
क्या है एस्ट्रॉलोजी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
18 वीं सदी तक यानी गैलिलियो से लेकर कोपरनिकस तक जो खगोल विशेषज्ञ (Astronomers) या गणितज्ञ (Mathematician) होते थे वही ज्योतिषी (Astrologers) भी होते थे. आज से 2300 साल से भी पहले एरिस्टरकस ऑफ सेमॉस (Aristarchus of Samos) ने बताया कि सूर्य केंद्र में है और पृथ्वी उसके चारों ओर चक्कर लगाती है. इसके बाद 5वीं सदी में भारत में आर्यभट्ट (Aryabhata) ने भी कहा पृथ्वी गोल है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है. बाद में 16 वीं सदी के आखिर और 17 वीं सदी के शुरू में इटली के खगोलविद गैलिलियो (Galileo) ने भी ग्रहों और नक्षत्रों का अध्ययन करते हुए यही बातें दोहराई. ज्योतिष शास्त्र को सबसे बड़ा और पहला झटका गैलिलियो के वक्त लगा जब गैलिलियो ने रोमन सम्राट फर्डिनांड द्वितीय (Ferdinand II, 1578-1637) की कुंडली देखकर दावा किया था कि वह लंबी उम्र तक जिएगा. लेकिन उसके इस दावे के कुछ ही दिनों बाद फर्डिनांड की मृत्यु हो गई.
18वीं सदी तक सभी खगोलविद और गणितज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे कि ग्रहों का प्रभाव तो होता है. लेकिन इसके आधार पर भविष्यवाणी करना सही नहीं है. 20वीं सदी तक बात यहां तक आ गई कि खगोल विज्ञान (Astronomy)सब्जेक्ट से ज्योतिष विज्ञान(Astrology)को अलग कर दिया गया. 1975 में The Humanist नाम के एक अमेरिकन जर्नल में दुनिया के 186 वैज्ञानिकों ने यह घोषित किया कि ज्योतिष आधारित भविष्यवाणियों का कोई आधार नहीं है. ग्रहों का मानव जीवन पर कोई प्रभाव नहीं होता है. प्रभाव सिर्फ तीन चीजों का होता है और वे हैं- गुरुत्वाकर्षण (Gravity), चुंबकत्व (Magnetism) और किरण (Rays). इसके साथ ही यह भी घोषणा की गई कि ज्योतिष विज्ञान झूठ और फरेब के अलावा कुछ नहीं है. इससे आम इंसानों को बचना चाहिए. इन 186 वैज्ञानिकों में से 19 नोबल प्राइज विनर थे. इन वैज्ञानिकों में एक भारतीय वैज्ञानिक सी. चंद्रशेखर भी थे.


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