धर्म-अध्यात्म

श्रावण मास में इनके दर्शन और पूजन, करने का भोले भक्त ,कभी खली हाथ वापस नहीं लौटते है

Neha Dani
11 July 2023 3:52 PM GMT
श्रावण मास में इनके दर्शन और पूजन, करने का  भोले भक्त ,कभी खली हाथ वापस नहीं लौटते है
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धर्म आध्यात्मिक: सनातन परंपरा में भगवान भोलेनाथ की भक्ति के लिए श्रावण मास का विशेष महत्व बताया गया है. यही कारण है कि इस पावन मास में हर शिव भक्त न सिर्फ अपने घर में बल्कि देश में स्थित तमाम शिवालयों पर जाकर अपनी कामना के अनुसार औढरदानी शिव की साधना-आराधना करता है. हिंदू धर्म में भगवान द्वादश ज्योतिर्लिंग से जुड़े मंदिरों की तरह पंचतत्व पर आधारित उन 5 शिवालयों का बहुत महत्व माना गया है, जिनके दर्शन मात्र से ही शिव साधक की बड़ी से बड़ी मनोकामना पलक झपकते पूरी हो जाती है. शिव कृपा बरसाने वाले ये 5 पावन धाम कहां हैं और इनकी पूजा का क्या है धार्मिक महत्व आइए इसे विस्तार से जानते हैं. पृथ्वी तत्व पर आधारित भगवान शिव का यह चमत्कारी मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम में स्थित है. आम के पेड़ के नीचे प्रतिष्ठित इस शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से शिव साधक के सभी कष्ट और चिंताएं दूर हो जाती हैं. बालू से बनें एकंबरनाथ शिवलिंग का जलाभिषेक करने की बजाय छींटे देने की परंपरा है. भगवान शिव का यह मंदिर देश के 10 बड़े मंदिरों में से एक है जो कि 23 एकड़ के क्षेत्र में है.
त्रिचिरापल्ली में स्थित जंबूकेश्वर मंदिर को जल तत्व का प्रतीक माना जाता है. मंदिर में प्रतिष्ठित शिवलिंग को स्थानीय लोग अप्पू लिंगम के नाम से पूजते हैं, जिसका अर्थ होता है जल लिंगम. भगवान भोलेनाथ का यह मंदिर भी काफी बड़े क्षेत्र लगभग 18 एकड़ में बना है. इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि कभी यहां पर माता पार्वती ने जल से शिवलिंग निकाल कर महादेव की पूजा की थी. तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में स्थित इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा अग्नि तत्व के रूप में की जाती है. हिंदू मान्यता के अनुसार महादेव के इस मंदिर में दर्शन और पूजन करने पर शिव भक्त के जीवन में छाया अंधेरा दूर होता है और उसे असीम ऊर्जा की प्राप्ति होती है. अरुणाचलेश्वर मंदिर में प्रितिष्ठित शिवलिंग लगभग तीन फिट है. दक्षिण भारत के इस शिव मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन बड़ी संख्या में भक्तगण पहुंचते हैं.
भगवान शिव का वायु तत्व पर आधारित मंदिर आंध्र प्रदेश के जिला चित्तुर के काला हस्ती क्षेत्र में स्थित है. उंची पहाड़ी पर बने भगवान शिव के इस मंदिर को शिव भक्त दक्षिण का कैलाश कहकर बुलाते हैं. कालहस्तीश्वर मंदिर के भीतर प्रतिष्ठित शिवलिंग की उंचाई लगभग चार फिट है. इस शिवलिंग को वायु लिंग या कर्पूर लिंगम के नाम से भी जाना जाता है. इस शिवलिंग पर न तो जल चढ़ाया जाता है और न ही इसका स्पर्श किया जाता है. भगवान शिव का आकाश तत्व पर आधारित मंदिर तमिलनाडु के चिदंबरम शहर में स्थित है. दक्षिण भारत के इस मंदिर को थिल्लई नटराज मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां पर भगवान शिव की नृत्य करते हुए मूर्ति के दर्शन होते हैं. पंचतत्वों पर आधारित मंदिरों में सिर्फ यही एक मंदिर है जहां पर भगवान शिव की लिंग की बजाय मूर्ति या फिर कहें साकार रूप की पूजा होती है.
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