- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- भगवान महावीर के शिष्य...
x
राजा प्रसेनजित एक दिन भगवान महावीर के दर्शन पाने उनके पास पहुंचे।
राजा प्रसेनजित एक दिन भगवान महावीर के दर्शन पाने उनके पास पहुंचे। महावीर के मुखमंडल की आभा को देख राजा बड़े अचरज में थे। वह उनके सम्मुख जमीन पर बैठ गए और उन्हें नमन करते हुए बोले, 'हे प्रभु, आप जैसे परमतपस्वी का दर्शन पाकर आज मैं अपने आपको धन्य महसूस कर रहा हूं। भगवन, मेरे पास वह हर चीज है जिसे कोई भी मनुष्य इस दुनिया में प्राप्त करना चाहता है। हे भगवन, मैंने सुना है कि आपने आत्मज्ञान, समाधि जैसी कोई दुर्लभ चीज प्राप्त कर ली है। क्या मैं भी इसे प्राप्त कर सकता हूं? मैं इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हूं।'
राजा की बात सुनकर महावीर मुस्कुराए और बोले, 'यदि आप आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो आप अपने राज्य की राजधानी जाएं। वहां एक बेहद गरीब व्यक्ति रहता है। उसने भी समाधि की प्राप्ति कर ली है। आप उससे पूछें। गरीब होने के कारण हो सकता है वह आपको समाधि बेचने को तैयार हो जाए।' राजा प्रसन्न हुए। वह उस गरीब व्यक्ति को खोजते हुए सैनिकों के काफिले के साथ एक टूटी-फूटी झोपड़ी के पास पहुंचे। राजा झोपड़ी के सामने रुक गए। सैनिकों की आवाज सुनकर साधारण वेशभूषा में एक आदमी झोपड़ी से बाहर निकला। राजा ने उस व्यक्ति से कहा, 'मैंने सुना है कि तुमने समाधि हासिल कर ली है। तुम जो चाहो मुझसे ले लो लेकिन बदले में मुझे समाधि दे दो।'
राजा की बात सुनकर बड़े ही शांत और निर्भीक भाव से उस गरीब व्यक्ति ने कहा, 'महाराज, समाधि कोई वस्तु नहीं है, जिसे खरीदा या बेचा जा सके। समाधि तो मन की वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष आदि विकारों और वासनाओं से मुक्त हो जाता है।' राजा की आंखें खुल गईं। वह भगवान महावीर के पास वापस लौटे और उसी दिन से उनके शिष्य बन गए।
संकलन : सुभाष चन्द्र शर्मा
Deepa Sahu
Next Story