धर्म-अध्यात्म

इस गांव में लगाते है होलिका दहन की राख से टीका

Apurva Srivastav
6 March 2023 6:34 PM GMT
इस गांव में लगाते है होलिका दहन की राख से टीका
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इस मंदिर में होलिका दहन ऐसे ही पिछले 35 सालों से किया जा रहा है
भारत को संस्कृति का देश इसलिए भी कहते हैं क्योंकि यहां परंपराओं को सालों साल निभाया जाता है. हर उत्सव के पीछे कोई ना कोई परंपरा होती है जिसके पीछे एक कथा विख्यात होती है. मगर एक ऐसी जगह है जहां पर्यावरण को ध्यान में रखकर 35 सालों से एक संदेश दिया जा रहा है. मध्यप्रदेश के जबलपुर में छोटी खेरमाई मंदिर मानस भवन है जहां सूखे पत्तों और गाय के कंडों से होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद उस राख को माथे पर तिलक के तौर पर लगाते हैं. जानें वहां ऐसा क्यों होता है?
होलिका दहन की राख से टीका लगाने की कैसी है ये परंपरा? (Holika Dahan 2023)
मध्यप्रदेश के जबलपुर में छोटी खेरमाई मंदिर मानस भवन है जहां सूखे पत्तों और गाय के कंडों से होलिका दहन किया जाता है. इसके बाद उस राख को माथे पर तिलक के तौर पर लगाते हैं. उस मंदिर में होली पर होलिका की मूर्ति और लकड़ियों की जगह पेड़ के सूखे पत्तों और गाय के गोबर से बने कंडों का दहन किया है. मानस भवन के समीप स्थित छोटी खेरमाई और राधा-कृष्ण मंदिर में अनूठा होलिका दहन करते हैं.
इस मंदिर में होलिका दहन ऐसे ही पिछले 35 सालों से किया जा रहा है. आंधी तूफान से मंदिर के परिसर में लगे पेड़-पौधों के सूखे पत्ते गिरते हैं उन्हें बटोरकर स्टोर कर दिया जाता है. इसके बाद वहां पली गाय के गोबर के कंडे बनाए जाते हैं और होलिका दहन उन दोनों चीजों से करते हैं. इस मंदिर में होलिका दहन के दिन भारी मात्रा में श्रद्धालु जमा होते हैं और धूमधाम से होलिका दहन मनाते हैं. यहां की होलिका दहन की राख का टीका वो सभी लोग लगाते हैं जो वहां पूजा के लिए आते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें, परिसर के पूजारियों का कहना है कि होलिका दहन के बाद सभी भक्त मंदिर परिसर में आते हैं और होलिका दहन की राख का टीका लगाते हैं. जिसके बाद एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देते हैं. इससे समाज को जंगल, पर्यावरण और गंदगी दूर भगाने का संदेश तो दिया ही जाता है साथ में भाईचारे का संदेश भी मिलता है.
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