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धर्म-अध्यात्म
माता के इस मंदिर में विक्रमादित्य ने 11 बार चढ़ाए थे अपने शीश
Shiddhant Shriwas
5 Oct 2021 11:20 AM GMT
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देवी सती के जहां-जहां पर अंग, आभूषण आदि गिरे वह स्थान शक्तिपीठ बन गया. ऐसा ही पावन शक्तिपीठ उज्जैन में हरसिद्धि माता के नाम से स्थित है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सनातन परंपरा के अनुसार पृथ्वी पर जहां-जहां सती के अंग या फिर उनसे जुड़ी चीजें जैसे वस्त्र या आभूषण आदि गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ बन गये. ये तीर्थ न सिर्फ देश में बल्कि पड़ोसी देशों में भी मौजूद हैं. एक ऐसा ही दिव्य शक्तिपीठ महाकाल की नगरी यानि कि उज्जैन में स्थित है. इस पावन शक्तिपीठ को लोग हरसिद्धि माता के मंदिर के नाम से जानते हैं.
यहां गिरी थी माता की कोहनी
मान्यता है कि जिस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी, वह उज्जैन के रुद्रसागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है. हरसिद्धि देवी के मंदिर की विशेषता यह है कि इसमें देवी का कोई विग्रह नहीं है, बल्कि सिर्फ कोहनी ही है, जिसे हरिसिद्धि देवी के रूप में पूजा जाता है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में माता हरसिद्धि के आस-पास महालक्ष्मी और महासरस्वती भी विराजित हैं.
विक्रमादित्य ने 11 बार चढ़ाया सिर
हरसिद्धि माता के इस पावन धाम से जुड़ी एक कहानी है, जिसके अनुसार सम्राट विक्रमादित्य जो कि माता के अनन्य भक्त थे, हर बारहवें वर्ष देवी के मंदिर पर आकर अपना शीश माता के चरणों में अर्पित कर देते थे, लेकिन हरसिद्धि देवी की कृपा से उन्हें हर साल एक नया सिर मिल जाता था. मान्यता है कि जब बारहवीं बार उन्होंने अपना सिर चढ़ाया तो सिर फिर वापस नहीं आया और उनका जीवन समाप्त हो गया था. मान्यता है कि मंदिर परिसर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे मुण्ड राजा विक्रमादित्य के ही हैं.
शिव-शक्ति के प्रतीक हैं ये दीप स्तंभ
हरसिद्धि माता के मंदिर की चहारदीवारी में चार प्रवेश द्वार हैं. मंदिर के पूर्व द्वार पर सप्तसागर तालाब है और दक्षिण-पूर्व कोने में कुछ ही दूरी पर एक बावड़ी है, जिसमें एक स्तंभ है. माता के पावन धाम में दो और स्तंभ है. इन दो विशालकाय दीप-स्तंभ को नर-नारी का प्रतीक माना जाता है. इसमें दाहिनी ओर का स्तंभ बडा़ है, जबकि बांई ओर का छोटा है. हालांकि कुछ लोग इसे शिव-शक्ति का प्रतीक भी मानते हैं. दोनों स्तंभ पर 1100 दीप हैं, जिन्हें जलाने के लिए तकरीबन 60 किलो तेल लगता है. दोनों स्तंभ के दीप जलाए जाने के बाद ये स्तंभ अत्यंत आकर्षक लगते हैं. शाम के समय इस दीपमालिका को देखने के लिए लोग बड़ी दूर दूर से यहां पर पहुंचते हैं.
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