धर्म-अध्यात्म

'पांडव वन' नाम स्थान में एक पत्थर पर 12 शिवलिंग विराजमान हैं, जिनका 5 हजार साल से भी अधिक समय से प्राकृति खुद साल के 365 दिन जलाभिषेक करती है

Neha Dani
14 July 2023 4:15 PM GMT
पांडव वन नाम स्थान में एक पत्थर पर 12 शिवलिंग विराजमान हैं, जिनका 5 हजार साल से भी अधिक समय से प्राकृति खुद साल के 365 दिन जलाभिषेक करती है
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धर्म अध्यात्म: भगवान भोलेनाथ के दुनिया के कोने-कोने में दिव्य और भव्य स्वरूप विराजमान हैं। मध्य प्रदेश के सागर जिले के सीमावर्ती इलाके में पांडव वन नाम से एक दिव्य स्थान है। यहां एक पत्थर पर 12 शिवलिंग विराजमान हैं, जिनका 5 हजार साल से भी अधिक समय से प्राकृति खुद साल के 365 दिन जलाभिषेक करती है। बताते हैं वनवास के दौरान पाण्डव इस स्थान पर रहे और उन्होंने ही 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में 12 शिवलिंग की स्थापना कर पूजा-अर्चना की थी। देश का पहला प्राचीन स्थल 'पांडव वन' जहां विराजमान 12 ज्याेतिर्लिंग के प्र​तीक स्वरुप विराजमान 12 शिवलिंग का बारहाें महीने प्रकृति खुद जलाभिषेक करती है। चट्टानाें से बारहाें महीने निकलने वाले निर्मल जल से शिवलिंग की जिलेहरी रहती हैं।
दरअसल हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के सागर जिला मुख्यालय से करीब 75 किलोमीटर दूर धामोनी-मालथौन क्षेत्र में यूपी की सीमा पर स्थित 'पांडव वन' की। यह पांडव वन करीब 5 हजार साल से बियावान जंगल के बीच मौजूद है। बताते हैं वनवास के दौरान पांच पाण्डव यहां रहे थे। उन्होंने यहां 12 ज्योतिर्लिंग के स्वरूप में 12 शिवलिंग की स्थापना एक चट्टान पर कर उपासना की थी। सबसे महत्वपूर्ण बात यहां प्राकृतिक झरने से साल भर पानी रिसता है, जिससे भोलेनाथ के 12 शिवलिंग का सतत अभिशेक हो रहा है। सीमा से लगे जंगल की सुरम्य वादियाें और जामनी नदी के किनारे स्थित पांडव वन जाे भगवान शंकर का एक अद्भुत धाम है। किवदंती है कि इस स्थल का नाम पांडव वन इसलिए पड़ा कि द्वापरयुग में पांडवाें ने वनवास के दाैरान यहां पर कुछ समय निवास किया था। उस समय उनके द्वारा उपासना के लिए यहां पर बारह ज्याेतिर्लिंग की स्थापना की गई थी। जंगल की पगडंडी का सफर तय कर जैसे ही इस स्थल पर पहुंचते है ताे नदी तरफ जा रही सीढ़ियाें से करीब दस मीटर नीचे उतरने के बाद इन द्वादश ज्याेर्तिलिंग के दर्शन हाेते है। पत्थर की चट्टान के ऊपर स्थापित इन शिवलिंगाें का 12 महीने 365 दिन प्रकृति खुद जलाभिषेक करती है।
चट्टानाें के अंदर से प्राकृतिक जल हमेशा निकलता रहता है जिससे यहां स्थित शिवलिंग की जिलहरी हमेशा जलमग्न रहती है। नागा साधू महंत अंगद गिरी सेवा में रहते हैं गिरी संप्रदाय के नागा साधु महंत अंगद गिरी बताते है कि यह देश का एकमात्र ऐसा प्राचीन दुर्लभ स्थल है जहां एक साथ 12 ज्याेर्तिलिंग विराजमान है और प्रकृति उनका 12 महीने 24 घंटे अनवरत अभिषेक करती है। चट्टानाें से निकलने वाला यह जल भी कई औषधीय तत्वाें से युक्त है। उनका कहना है कि यह ऋषि, मुनियाें और संताे की तप स्थली रही है। यहां पर कई गुप्त गुफाएं है। समान नागरिक संहिता क्या है, किस धर्म पर कैसा असर डालेगा यूसीसी ? यह भी पढ़ें: बतख का लालच पड़ा भारी, निगलने के चक्कर में धरा ग या 'अजगर' कैसे पहुंच सकते हैं पांडव वन तक सागर जिले में यूपी की सीमावर्ती घने जंगलों के बीच स्थित पांडव वन पहुंचने के लिए मालथौन इलाके के ग्राम दरी की तरफ से जा सकते हैं, लेकिन बारिश में जामनी नदी को क्रॉस करना होता है। यह मुश्किल होता है, इसलिए बहराेल से मदनपुर, दिदाेनियां हाेते हुए पाराेल से सीधा रास्ता पांडव वन पहुंच सकते हैं। साथ ही मालथाैन से अटा, गाेहना, नाराहट हाेते हुए पटना पाराेल गांव से सीधा पांडव वन जाने का मार्ग है।

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