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किशोरावस्था में अगर बच्चे मां-बाप की बातें न सुनें, तो अपनाने चाहिए तरीका
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | बच्चे जब अपनी किशोरावस्था पर आते हैं तो उनकी मनोदशा में परिवर्तन होता है. उनके अंदर कुछ कर गुजरने वाला जोश होता है, शारीरिक ताकत होती है और दिमाग भी काफी तेज चलता है. लेकिन इन सब को एक साथ संभालने वाला अनुभव नहीं होता. इसलिए वे बातों को अपने ही तरीके से समझते हैं और उसे ही सच मानने लगते हैं. बड़ों को ऐसे में बच्चों का मार्गदर्शन करने की जरूरत होती है ताकि वे अपनी शक्तियों का सदुपयोग करें और अपने भविष्य को बेहतर बना सकें. इस उम्र में जरा सी चूक बच्चों का पूरा भविष्य बिगाड़ सकती है.
आचार्य चाणक्य का भी मानना था कि बच्चों की किशोरावस्था आने के बाद मां-बाप का उनको डील करने का तरीका पूरी तरह बदल जाना चाहिए, ताकि वे बच्चों के करीबी बन सकें और बच्चे अपने किसी भी काम को करने से पहले उनकी राय लें. यदि ऐसा नहीं होता तो बच्चे आपकी बात सुनना भी बंद कर देंगे और निरंकुश हो जाएंगे. जानिए इस मामले में क्या कहती है चाणक्य नीति.
बच्चों के मित्र बनें
आचार्य चाणक्य का मानना था कि बच्चों के बड़े होने के बाद उनके माता पिता को उनका दोस्त बन जाना चाहिए. उनके साथ मित्रों की तरह ही व्यवहार करना चाहिए. यदि आपका व्यवहार मित्रवत होगा तो बच्चों को भी आपसे कुछ कहने में संकोच नहीं होगा और वे आपके साथ अपनी हर बात को शेयर करेंगे. ऐसे में आप उन्हें अपने हिसाब से गाइड कर सकते हैं.
गलती करने पर प्यार से समझाएं
किशोरावस्था में जोश और ताकत के गुमान में बच्चे कई बार गलतियां कर बैठते हैं. गलत दोस्त बना लेते हैं. ऐसे में उन्हें डांटना नहीं चाहिए बल्कि प्यार से समझाने का प्रयास करना चाहिए. डांटने से वे आपकी एक बात भी सुनना पसंद नहीं करेंगे और गलत जवाब देंगे. इसलिए बच्चों को प्रेम से उनकी गलती का अहसास करवाएं ताकि वे इस गलती को दोबारा न दोहराएं.
कम्युनिकेशन बेहतर करें
यदि आपके और बच्चे के बीच में कम्युनिकेशन गैप आ जाता है, तो भी आपके बच्चे आपसे दूर हो सकते हैं. इसलिए बच्चों की बात को पूरे ध्यान से सुनें और उनके साथ बेहतर संवाद बनाकर रखें. ताकि उनके जीवन से जुड़ी हर छोटी और बड़ी बात आपको पता हो