धर्म-अध्यात्म

Sawan में रुद्राष्टकम का महत्व और पाठ करने के लाभ और नियम

Tara Tandi
28 July 2024 12:03 PM GMT
Sawan में रुद्राष्टकम का महत्व और पाठ करने के लाभ और नियम
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Sawan ज्योतिष न्यूज़ : रुद्राष्टकम, जो भगवान शिव की स्तुति के लिए लिखा गया है के रचयिता महान संत तुलसीदास जी हैं। तुलसीदास जी जो रामचरितमानस के रचयिता भी हैं ने भगवान शिव की महिमा का वर्णन करते हुए इस स्तोत्र की रचना की थी। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास जी ने रुद्राष्टकम की रचना वाराणसी (काशी) में की थी, जो शिव का प्रमुख तीर्थ स्थल है। यह स्तोत्र भगवान शिव की आराधना का एक अद्वितीय माध्यम है, जिसमें उनकी महिमा, गुण और विशेषताओं का वर्णन किया गया है। सावन का महीना भगवान शिव की उपासना के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने में रुद्राष्टकम का नियमित पाठ करना भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत लाभकारी होता है।
रुद्राष्टकम पढ़ने का महत्व
शांति और सुख-
रुद्राष्टकम का पाठ व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका नियमित पाठ करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और तनाव दूर होता है।
रोगों से मुक्ति
ऐसा माना जाता है कि रुद्राष्टकम का पाठ करने से व्यक्ति को विभिन्न शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। यह स्तोत्र शिव की कृपा प्राप्ति का माध्यम है, जिससे व्यक्ति स्वस्थ और निरोगी रहता है।
आध्यात्मिक विकास
रुद्राष्टकम का पाठ व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उसे आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में अग्रसर करता है। इस स्तोत्र का गहन अर्थ और इसकी भावपूर्ण स्तुति व्यक्ति के मन को शुद्ध करती है और उसे आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है।
कठिनाइयों का निवारण
जीवन में आने वाली विभिन्न कठिनाइयों और समस्याओं का निवारण करने के लिए रुद्राष्टकम का पाठ अत्यंत प्रभावी माना जाता है। भगवान शिव की स्तुति करते हुए, व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए उनकी कृपा प्राप्त करता है।
शिव की कृपा प्राप्ति
रुद्राष्टकम भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक विशेष माध्यम है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति भगवान शिव की अनंत कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है, जिससे उसका जीवन सफल और समृद्ध हो जाता है।
रुद्राष्टकम का पाठ करने के नियम
रुद्राष्टकम का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए कुछ विशेष समय और अवसरों को अत्यंत शुभ माना गया है। रुद्राष्टकम का पाठ प्रातःकाल (सुबह) और संध्याकाल (शाम) के समय करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस समय वातावरण शुद्ध और शांत होता है, जिससे पाठ का प्रभाव अधिक होता है।
सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दिन रुद्राष्टकम का पाठ करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन की सभी समस्याएं दूर होती हैं।
महाशिवरात्रि और मासिक शिवरात्रि के दिन रुद्राष्टकम का पाठ करने से भगवान शिव की अनंत कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्री शिव रूद्राष्टकम
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥> >
हिंदी अर्थ
हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के ईश्वर और सबके स्वामी शिवजी, मैं आपको नमस्कार करता हूं। निज स्वरूप में स्थित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन, आकाश रूप शिवजी मैं आपको नमस्कार करता हूं।
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे परमेशवर को मैं नमस्कार करता हूं।
जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर नदी गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है।
जिनके कानों में कुंडल शोभा पा रहे हैं। सुंदर भृकुटी और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख, नीलकंठ और दयालु हैं। सिंह चर्म का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके नाथ श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
प्रचंड, श्रेष्ठ तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्य के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किए, भाव के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्री शंकरजी को मैं भजता हूं।
कलाओं से परे, कल्याण स्वरूप, प्रलय करने वाले, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुरासुर के शत्रु, सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालनेवाले हे प्रभो, प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।
जब तक मनुष्य श्री पार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इस लोक में, न ही परलोक में सुख-शांति मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं होता है। अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, प्रसन्न होइए।
मैं न तो योग जानता हूं, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो, मैं तो सदा-सर्वदा आप को ही नमस्कार करता हूं। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म के दुख समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिए। हे शंभो, मैं आपको नमस्कार करता हूं।
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