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- अपरा एकादशी का महत्व...
Apara Ekadashi 2023: शास्त्रों में ज्येष्ठ माह बहुत पवित्र माना जाता है। इस महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। इस दिन शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। अपरा एकादशी का अर्थ होता है अपार पुण्य। पदम पुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उनके वामन रूप में करने का विधान है। अपरा एकादशी को जलक्रीड़ा एकादशी, अचला एकादशी और भद्रकाली एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में अर्थ और काम से ऊपर उठकर धर्म के मार्ग पर चलकर मोक्ष को प्राप्त करता है। अपरा एकादशी का व्रत करने से भगवान श्रीहरि विष्णु मनुष्य के जीवन से सभी दुख और परेशानियों को दूर dकर अपार पुण्य प्रदान करते हैं। यह एकादशी बहुत पुण्य प्रदान करने वाली और बड़े-बड़े पातकों
का नाश करने वाली है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा,परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। अपरा को उपवास करके एवं इस महत्व को पड़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है।
पदमपुराण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु की पूजा उनके वामन स्वरूप में की जाती है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण को पंचामृत, रोली,मोली,गोपी चन्दन,अक्षत,पीले पुष्प,ऋतुफल,मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। श्री हरि की प्रसन्नता के लिए तुलसी व मंजरी भी प्रभु को जरूर अर्पित करें। 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से आज के दिन बहुत फलदायी है।
शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नाम के एक बड़े ही धर्मात्मा राजा थे पर इनका छोटा भाई वज्रध्वज जो पापी और अधर्मी था। इसने एक रात अपने बड़े भाई महीध्वज की हत्या कर दी। इसके बाद महीध्वज के मृत शरीर को जंगल में ले जाकर पीपल के वृक्ष के नीचे गाड़ दिया।अकाल मृत्यु होने के कारण धर्मात्मा राजा को भी प्रेत योनि में जाना पड़ा।
राजा प्रेत के रुप में पीपल पर रहने लगा और उस रास्ते से आने जाने वालों को परेशान करने लगा। एक दिन सौभाग्य से उस रास्ते से धौम्य नामक ॠषि गुजरे। ऋषि ने जब प्रेत को देखा तो अपने तपोबल से सब हाल जान लिया।ॠषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने का विचार किया और प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। संयोग से उस समय ज्येष्ठ मास की एकादशी तिथि भी थी। ऋषि ने अपरा एकादशी का व्रत किया और एकादशी के पुण्य को राजा को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा प्रेत योनि से मुक्त हो गया और दिव्य देह धारण करके स्वर्ग चले गए।