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धर्म-अध्यात्म
साढ़ेसाती एवं ढैय्या से पाना है छूटकारा तो करें आज ये एक काम
Teja
30 April 2022 12:19 PM GMT
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आज वैशाख आमवस्या के दिन शनिवार होने से शनि अमावस्या (Shani Amavasya) का योग बना है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज वैशाख आमवस्या के दिन शनिवार होने से शनि अमावस्या (Shani Amavasya) का योग बना है. शनि अमावस्या पर आप शनि देव के आशीर्वाद से साढ़ेसाती एवं ढैय्या की पीड़ा से राहत पा सकते हैं. शनि की साढ़ेसाती एवं ढैय्या में लोगों को कई प्रकार की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं. पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ.
गणेश मिश्र बताते हैं कि आज के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए आप पूजा के समय शनि स्तोत्र का पाठ करें. इस पाठ से शनि देव प्रसन्न होते हैं. अयोध्या के राजा दशरथ ने पृथ्वीवासियों को शनि प्रकोप से बचाने के लिए शनि लोक में जाकर कर्मफलदाता भगवान को प्रसन्न किया था. उन्होंने ही शनि स्तोत्र की रचना की थी, जिससे शनि देव अत्यंत प्रसन्न हुए थे. तब से शनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए शनि स्तोत्र का पाठ किया जाता है.
जब आप शनि स्तोत्र का पाठ करें, उससे पूर्व शनि देव की विधिपूर्वक पूजा अर्चना कर लें. उनको काला तिल, अक्षत्, नीले फूल, उड़द की दाल, काला या नीला वस्त्र आदि अर्पित करें. सरसों के तेल से उनका अभिषेक करें. शनि चालीसा का पाठ करें. उसके बाद शनि स्तोत्र का पाठ करें. इस पाठ को करते समय शब्दों की शुद्धता पर ध्यान दें. जब शनि स्तोत्र पढ़ लें, उसके बाद तिल के तेल वाले दीपक से शनि देव की आरती करें. उसके पश्चात क्षमा प्रार्थना मंत्र पढ़कर शनि देव से साढ़ेसाती एवं ढैय्या की पीड़ा से राहत देने की प्रार्थना करें.
शनि स्तोत्र
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।।
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते।।
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च।।
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते।।
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:।।
Teja
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