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प्रदोष व्रत भगवान शिव को प्रसन्न कर जीवन में सुख-समृद्धि, लक्ष्मी प्राप्त करने का स्वर्णिम अवसर है। प्रदोषकाल में शिव पूजन अत्यन्त लाभदायक होता है। रावण के पास जितनी भी धन-सम्पदा थी, वह सब शिव कृपा का ही प्रताप था। रावण प्रदोष काल में शिव को प्रसन्न कर, सिद्धियां प्राप्त करता था। धर्मशास्त्रों में लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गन्ने के रस द्वारा शिव जी का रूद्राभिषेक प्रदोष काल में करने का निर्देश दिया गया है।प्रदोष का भगवान शिव के साथ अन्योन्याश्रित संबंध है। 'प्रदोषो रजनीमुखम' रात्रि के प्रारंभ की बेला प्रदोष नाम से संबोधित की जाती है। रात्रि शिव को विशेष प्रिय है। मुख्यतर प्रदोष का अर्थ है, रात्रि का प्रारंभ।
प्रदोष व्रत स्त्री, पुरुष दोनों कर सकते हैं प्रदोष व्रत प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। इसके उपासक देव भगवान शंकर हैं, प्रदोष काल में महादेवी का भी विधिवत पूजन किया जाता है। इसमें व्रती को सांयकाल शिव जी का पूजन करके ही भोजन करना चाहिए। धन-सम्पत्ति प्राप्ति के लिए प्रदोष काल में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ विशेष लाभदायक होता है। लंकापति रावण शिवजी का अनंत भक्त था और रावण ने शिव को प्रसन्न कर सोने की लंका और अथा धन-सम्पदा तथा सिद्धियां प्राप्त की थीं। स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति एवं कष्टों से निवृत्ति के लिए शिव ताण्डव स्त्रोत का पाठ अचूक उपाय है। प्रदोषकाल में पूजा करके रावण कृत शिव ताण्डव स्त्रोत, जो पढ़ता है भाव भक्ति से, वह सर्वत्र विजयी होता है।
शिव शंकर शुभ लक्ष्मी देते सुख सम्पत्ति, धन अपरम्पार।
महिमा शिव की बड़ी निराली, नहीं किसी ने पाया पार।।
प्रदोष व्रत का माहात्म्य
धर्मशास्त्रानुसार प्रदोष अथवा त्रयोदशी का व्रत मनुष्य को संतोषी एवं सुखी बनाता है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से सुहागन स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है। जो स्त्री-पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर पूरी करते हैं। सूत जी के कथानुसार त्रयोदशी का व्रत करने वाले को सौ गाय-दान करने का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि-विधान और तन-मन-धन से करता है, उसके सभी दुःख दूर हो जाते हैं।
प्रदोष व्रत का विधि-विधान
प्रातःकाल स्नानादि से पवित्र होकर शिव-स्मरण करते हुए निराहार रहें, सायंकाल, सूर्यास्त से एक घण्टा पूर्व, पुनः स्नान करके गंध, मदार पुष्प, बिल्वपत्र, धूप-दीप तथा नैवेद्य आदि पूजन सामग्री एकत्र कर लें, पांच रंगों को मिलाकर पद्म पुष्प की प्रकृति बनाकर आसन पर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और देवाधिदेव शंकर भगवान का पूजन करें। पंचाक्षर मंत्र का जप करते हुए जल चढ़ाएं और ऋतुफल अर्पित करें। जल चढ़ाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि जलधारा टूटे नहीं। इसी प्रकार मंत्र का जप लयबद्ध हो। जल चढ़ाते समय यदि आंखें खुली हुई हों, तो दृष्टि जलधारा पर टिकी हो और यदि भक्ति-भाव में आंखें मुंद गई हों, तो ध्यान, जप के शब्दों-अर्थों के साथ चल रहा हो। जिस कामनापूर्ति हेतु व्रत किया जा रहा है, उसकी प्रार्थना भगवान शिव के समक्ष श्रद्धा-भाव से करें, शिव के साथ पार्वतीजी और नंदी का पूजन भी करना चाहिए। प्रदोष व्रत दोनों पक्षों की त्रयोदशी को करना चाहिए, प्रदोष व्रत अति प्रशस्त तथा सभी के करने योग्य है। स्कन्द आदि पुराणों में इस व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है।
उद्यापन
विधि-विधान से इस व्रत को करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है। व्रत रखने वाले को ग्यारह त्रयोदशी अथवा वर्ष भर की 26 त्रयोदशी के व्रत करने के उपरान्त उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन के एक दिन पहले घर में गणेश पूजन कर भजन-कीर्तन, नृत्य आदि रात्रि जागरण करें। दूसरे दिन सुबह शुद्ध होकर, शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर उनका षोडशोपचार विधि से पूजन करें। 'ऊं उमा सहिताय नमः शिवाय' मन्त्र बोलते हुए 108 बार खीर की अग्नि में आहुति दें। हवन के बाद किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण या आचार्य को भोजन कराकर यथाशक्ति दान-दक्षिणा देकर विदा करें। ऐसा करने वाला व्रती इस लोक में धन-धान्य, पुत्र-पुत्री इत्यादि के सुख को भोगकर अन्त में मोक्ष पद पा जाता है।
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