धर्म-अध्यात्म

शुक्रवार को संतोषी माता का कर रहे हैं व्रत तो भूलकर भी न करें ये गलती

Triveni
22 Jan 2021 4:14 AM GMT
शुक्रवार को संतोषी माता का कर रहे हैं व्रत तो भूलकर भी न करें ये गलती
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शुक्रवार के दिन मां संतोषी का भी व्रत किया जाता है. मान्यता है कि संतोषी माता के 16 व्रत यदि कोई भक्त कर ले तो बड़े से बड़े संकट टल जाते हैं.

जनता से रिश्ता वेबडेसक | शुक्रवार के दिन मां संतोषी का भी व्रत किया जाता है. मान्यता है कि संतोषी माता के 16 व्रत यदि कोई भक्त कर ले तो बड़े से बड़े संकट टल जाते हैं. घर में सुख शांति और वैभव आता है. लेकिन इस व्रत के नियम बहुत कठिन हैं. मान्यता है कि अगर कोई व्रती नियमों का उल्लंघन करे तो उसे इसके विपरीत प्रभाव भी देखने पड़ सकते हैं.

संतोषी माता का व्रत रखने वाले के लिए खट्टी चीजें जैसे अचार, दही, टमाटर या अन्य कोई चीज छूना और खाना वर्जित होता है. यहां तक कि प्रसाद खाने वाले लोगों के लिए भी खट्टी चीजें खाने की मनाही है. इस नियम का कड़ाई से पालन करना जरूरी होता है. ऐसा करना अशुभ माना जाता है. मान्यता है कि यदि व्रती या प्रसाद खाने वाले लोग शुक्रवार के दिन खटाई खाएं तो माता नाराज हो जाती हैं और घर में अशांति होती है और कई तरह के नुकसान होते हैं. इसलिए अगर आप ये व्रत रख रही हैं तो इस नियम को भूलकर भी न तोड़ें.
ये है व्रत विधि
सूर्योदय से पूर्व उठकर घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं. घर के ही किसी पवित्र स्थान पर संतोषी माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. संपूर्ण पूजन सामग्री के साथ किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें. जल भरे पात्र पर गुड़ और चने से भरकर दूसरा पात्र रखें. इसके बाद संतोषी माता की विधि विधान से पूजा करें. फिर व्रत कथा पढ़ें या सुनें. इसके बाद आरती कर सभी को गुड़ चने का प्रसाद बांटें. अंत में बड़े पात्र में भरे जल को घर में जगह जगह छिड़क दें और बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें. इसी तरह 16 शुक्रवार तक व्रत रखें
16वें शुक्रवार को उद्यापन
अंतिम शुक्रवार यानी 16वें शुक्रवार को व्रत का उद्यापन करना होता है.इस दिन हर बार की तरह संतोषी माता की पूजा करने के बाद आठ या 16 बच्चों को खीर पूरी का भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिणा और केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. आखिर में स्वयं भोजन खाएं.
ये है व्रत कथा
एक बुढ़िया थी0 उसका एक ही पुत्र था. बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती, लेकिन उसे ठीक से खाना नहीं देती थी. यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी नहीं कह पाता. काफी सोच विचारकर एक दिन लड़का मां से बोला, मां मैं परदेस जा रहा हूं. मां ने उसे जाने की आज्ञा दे दी. इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला, मैं परदेस जा रहा हूं, अपनी कुछ निशानी दे दो.
बहू बोली, मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है और पति के चरणों में गिरकर रोने लगी. इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई. पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए. एक दिन बहू दुखी होकर मंदिर चली गई. वहां उसने देखा बहुत सी महिलाओं को पूजा करते देखा तो इसके बारे में जानकारी ली. इस पर महिलाओं ने उसे हम संतोषी माता के व्रत की बात बतायी और महिमा का बखान किया.
महिलाओं ने बताया कि शुक्रवार को स्नान के बाद एक लोटे में शुद्ध जल लेकर गुड़ चने का प्रसाद लेना और सच्चे मन से मां खटाई भूल कर भी मत की पूजा करना, लेकिन भूलकर भी खटाई न तो खाना और न ही उन्हें खाने देना, जिसने ये प्रसाद खाया हो. व्रत विधान सुनकर बहू ने भी संतोषी माता का व्रत शुरू कर दिया. कुछ दिनों बाद घर में पैसों की किल्लत दूर होने लगी. इस पर बहू ने कहा, हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी. फिर मातारानी ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा, सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. मां की कृपा से कई व्यापारी आए और सेठ का सारा सामान खरीद ले गए.
अब साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी. घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए. पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की. पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी और उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना. उद्यापन के समय खाना खाते खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया.
बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली खरीदकर खाने लगे तो माता रुष्ट हो गईं. इसके बाद ही राजा के दूत आए और उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे. तब किसी ने बहू को बताया कि उसके दिए पैसों से बच्चों ने इमली खाई है. इसके बाद बहू ने फिर से उद्यापन का संकल्प लिया. तभी उसे अपना सामने से आता दिखाई दिया. अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया. इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं और नौ माह बाद बहू को चांद से पुत्र की प्राप्ति हुई. सास, बहू और बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे.


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