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अपने हौसले से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले महान क्रांतिकारी दामोदर हरी चापेकर को शत-शत नमन

HARRY
25 Jun 2023 5:56 PM GMT
अपने हौसले से अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले महान क्रांतिकारी दामोदर हरी चापेकर को शत-शत नमन
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Damodar Hari Chapekar: महाराष्ट्र के तीन भाइयों, जिन्हें संयुक्त रूप से ‘चापेकर बंधु’ के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर देश की आजादी के हवन कुंड की अग्नि को और तेज किया था। इनकी जुगलबंदी ने न केवल अंग्रेजों के छक्के छुड़ाए बल्कि गोरों के सरदारों के सीने में गोलियां उतारकर ऐसा भूचाल खड़ा किया कि अंग्रेजी बादशाहत की चाल धीमी पड़ गई।

चापेकर बंधु महाराष्ट्र के पुणे के पास चिंचवड़ नामक गांव के निवासी थे। सबसे बड़े दामोदर हरि चापेकर का जन्म 25 जून, 1869 को एक सम्पन्न ब्राह्मण परिवार में प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चापेकर के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मीबाई था। इनके दो छोटे भाई बालकृष्ण हरि चापेकर का जन्म 1873 एवं वासुदेव हरि चापेकर का जन्म 1880 में हुआ था। बचपन से ही सैनिक बनने की इच्छा दामोदर के मन में थी, विरासत में कीर्तनकार का यश-ज्ञान मिला ही था।

हर्षि पटवर्धन एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक इनके आदर्श थे। तीनों भाई, तिलक जी को गुरुवत सम्मान देते थे। दामोदर ने फौज में प्रवेश करने के लिए काफी भाग-दौड़ की परन्तु सफल नहीं हो सके। यह स्वप्न तो बिखर गया मगर उन्होंने निराश हो हाथ पर हाथ रख बैठना सीखा न था। तिलक की प्रेरणा से उन्होंने युवकों का एक संगठन ‘व्यायाम मंडल’ तैयार किया। इसका लक्ष्य अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय जनता में जागरूकता और क्रान्तिकारी संघर्ष के विषय में सफल योजना बनाना था।

चापेकर बंधुओं ने 1894 से पुणे में प्रति वर्ष तिलक जी द्वारा प्रवर्तित ‘शिवाजी महोत्सव’ तथा ‘गणपति-महोत्सव’ का आयोजन प्रारंभ कर दिया जिसने इन युवकों को देश के लिए कुछ कर गुजरने हेतु क्रांति-पथ का पथिक बनाया। 1897 में पुणे शहर प्लेग जैसी खतरनाक बीमारी से जूझ रहा था तो सरकार ने वाल्टर चार्ल्स रैंड तथा आयर्स्ट को जनता को सुविधाएं देने की जिम्मेदारी दी परन्तु इन अधिकारियों ने प्लेग पीड़ितों की सहायता की जगह लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। वे अंग्रेज सैनिकों के साथ घरों में घुसकर नारियों की इज्जत लूटते, धन-सम्पदा छीनते।

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