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गूजरी महला
जिसु मानुख पहि करउ बेनती सो अपनै दुखि भरिआ ॥ पारब्रहमु जिनि रिदै अराधिआ तिनि भउ सागरु तरिआ ॥१॥ गुर हरि बिनु को न ब्रिथा दुखु काटै ॥ प्रभु तजि अवर सेवकु जे होई है तितु मानु महतु जसु घाटै ॥१॥ रहाउ ॥ माइआ के सनबंध सैन साक कित ही कामि न आइआ ॥ हरि का दासु नीच कुलु ऊचा तिसु संगि मन बांछत फल पाइआ
में जिस् भी मनुष से ( अपने दुःख की) बात करता हूँ , वह अपने दुखो से भरा हुआ दिखता है(वह मेरा दुःख क्या हल्का करे ?) । जिस मनुष ने अपने दिल में परमात्मा की पूजा की है, उस ने ही यह डर (भरा संसार) सुमन्दर पार किया है ॥੧॥ गुरु से बिना और परमात्मा के बिना कोई और सदा के लिए (किसी का) दुःख पीड़ा काट नहीं सकता । परमात्मा (का आदर ) छोड़ कर किसी और सेवक बने तो इस काम में इज्जत मान शोभा घट जाती है ॥੧॥रहाऊ ॥ माया के कारन बने हुए यह साक सजन रिश्तेदार (दुखो को खत्म करने में) किसी भी काम नहीं आ सकते । परमात्मा का भगत जो छोटी कूल से भी हो, उस को सब से ऊपर ( जानो ), उस की संगत में रहने से मन-इच्छा फल प्राप्त कर सकते है
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Bharti Sahu 2
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