- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- हुक्मनामा श्री...
हे भाई! आँखों से (हर जगह प्रभू के) दर्शन करके (मेरा) मन (और वासना से) तृप्त रहता है, (मेरे) कान गुरू की बाणी गुरू के शबद को (ही) सुनते रहते हैं। (प्रभू की सिफत सालाह) सुन-सुन के (मेरी) जिंद (नाम-रस में) भीगी रहती है, (मैं) बड़े आनंद से राम-गोपाल के गुण गाता रहता हूँ।6। हे भाई! माया के तीन गुणों के असर तले रहने वाले जीव (सदा) माया के मोह में फसे रहते हैं। गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (वह) चौथा पद प्राप्त कर लेता है (जहाँ माया का प्रभाव नहीं पड़ सकता)।
(गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य) एक (प्यार-भरी) निगाह से सारी दुनिया को एक जैसा जानता है, उसको (यह प्रत्यक्ष) दिखाई देता है (कि) हर जगह परमात्मा ही पसरा हुआ है।7। हे भाई! गुरू के सन्मुख रहने वाला मनुष्य (ये) समझ लेता है कि अलख प्रभू स्वयं ही स्वयं (हर जगह मौजूद) है, हर जगह परमात्मा का ही नाम है, सारी दुनिया में परमात्मा की ही ज्योति है। हे नानक! दीनों पर दया करने वाले प्रभू जी जिन पर मेहरवान होते हैं, वह मनुष्य भक्ति-भावना से परमात्मा के नाम में लीन रहते हैं।8।1।