धर्म-अध्यात्म

कैसे हुई दीर्घायु के महामंत्र महामृत्युंजय मंत्र की रचना, जानिए ये पौराणिक कथा

Triveni
22 Jun 2021 7:20 AM GMT
कैसे हुई दीर्घायु के महामंत्र महामृत्युंजय मंत्र की रचना, जानिए ये पौराणिक कथा
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महामृत्युंजय मंत्र दीर्घायु और स्वास्थ्य का मंत्र कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति के बारे में पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है :

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| महामृत्युंजय मंत्र दीर्घायु और स्वास्थ्य का मंत्र कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति के बारे में पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है : शिव जी के अनन्य भक्त ऋषि मृकण्डु के कोई संतान नहीं थी। संतान की प्राप्ति की कामना से उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने ऋषि मृकण्डु की इच्छानुसार उन्हें संतान रूप में पुत्र का वरदान तो दिया, किंतु संतान अल्पायु होगी, ऋषि को यह भी चेताया। कुछ समय पश्चात ऋषि मृकण्डु के यहां पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसके बारे में ज्योतिषियों ने बताया कि उसकी आयु केवल 16 वर्ष की होगी। ऋषि मृकण्डु यह जानते थे कि उनकी संतान को अल्पायु होना है, लेकिन यह सुनते ही वे विषाद से घिर गए। संतान जन्म के बावजूद उन्हें विषाद में देख उनकी पत्नी ने जब उनसे उनके दुख का कारण पूछा, तो उन्होंने सारी बात कह सुनाई। तब उनकी पत्नी ने कहा कि शिव जी की कृपा होगी, तो यह विधान भी वे टाल देंगे। ऋषि मृकण्डु ने अपने पुत्र का नाम मार्कण्डेय रखा और उन्हें शिव मंत्र भी दिया। मार्कण्डेय शिव भक्ति में डूबे रहते। जब थोड़ा बड़े हुए, तब उनकी अल्पायु को लेकर चिंतित माता ने यह बात उनसे कह सुनाई और कहा कि वह शिव भक्ति से इसे टालने का प्रयास करें। शिव जी चाहेंगे, तो जरूर यह वरदान देंगे।

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए वह उन्हीं सदाशिव देव से दीर्घायु होने का वरदान भी प्राप्त करेंगेे, जिन्होंने उन्हें जीवन दिया है। आयु के वर्ष पूरे होने को आए थे। मार्कण्डेय जी ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र -ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥ - की रचना की और शिव मंदिर में बैठ कर इसका अखंड जाप करने लगे।
जब समय पूरा हुआ, तो यमराज के भेजे दूत मार्कण्डेय को छूने का साहस भी नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि वह महाकाल की आराधना में आंख मूंद कर लीन थे। उनका अखंड जाप कहीं रुकने को ही नहीं आ रहा था। अंतत: यमदूत वापस चले गए और यमराज से सारा वृत्तांत कहा। तब स्वयं यमराज को मार्कण्डेय जी के प्राण लेने उनके पास जाना पड़ा। उन्होंने अपना पाश जब मार्कण्डेय पर डाला, तो बालक मार्कण्डेय शिवलिंग से लिपट गए। ऐसे में पाश गलती से शिवलिंग पर भी गिरा। यमराज की इस आक्रामकता से शिव जी क्रोधित हो गए और अपने भक्त बालक को यूं यमराज के हाथों जाता देख प्रकट होने को विवश हुए। प्रकट हुए शिव जी को क्रोधित देख कर यमराज ने हाथ जोड़ कर विधि के लिखे विधान की याद दिलाई, तो शिवजी ने मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान देकर विधान ही बदल दिया। तब यमराज ने बालक मार्कण्डेय के प्राण छोड़ दिए और हाथ जोड़ कर कहा, 'मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने वाले जीव को पीड़ा नहीं दूंगा।'
आगे चल कर बालक मार्कण्डेय महान ऋषि के रूप में विख्यात हुए और मार्कण्डेय पुराण की रचना की। कहते हैं कि महामृत्युंजय मंत्र के जप के कारण ही रावण ने भी अपने नौ सिर शिव पूजा में काटकर अर्पित किए थे।


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