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- कैसे हुआ था द्रौपदी का...
इस स्वयंवर के लिए दूर-दूर से राजा महाराजा और राजकुमार आए थे। पांडव भी वहां पहुंचे और अपना स्थान ग्रहण किया। यहीं पर श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम और गणमान्य यदुवंशियों के साथ बैठे हुए थे। वहीं, दूसरा ओर कौरव भी बैठे थे। फिर सभा में राजा द्रुपद पधारे। सभा की एक ओर सभी कौरव भी विराजमान थे। कुछ देर बाद सभा में राजा द्रुपद पधारे। उन्होंने स्वयंवर में आए सभी का स्वागत किया। सभी राजकुमारी द्रौपदी का इंतजार कर रहे थे। साथ ही सभी के मन में यही सवाल था कि वो किसे अपना स्वयंवर चुनेंगी।
कुछ ही देर बाद राजकुमारी द्रौपदी सभा में पधारी। वे बेहद ही सुंदर लग रही थीं। सभी उन्हें देख मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने अपने पिता के सिंहासन के पास ही अपना स्थान ग्रहण किया। राजा द्रुपद ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, "मैं राजा द्रुपद, इस स्वयंवर में आप सभी मेहमानों का स्वागत करता है। मैं जानता हूं कि आप सभी मेरी पुत्री से विवाह करने आए हैं। लेकिन इस स्वयंवर की एक शर्त होगी। सभा के बीच में एक नकली मछली लटकी हुई गोल घूम रही हैं। उसके नीचे एक तेल भरा पात्र रखा है। इसमें उस मछली का प्रतिबिंब दिख रहा है। शर्त के अनुसार, जो भी प्रतिबिंब में देखकर मछली की आंख पर निशाना लगा देगा, वह ही इस स्वयंवर का विजेता होगा। इसी का विवाह द्रौपदी से होगा।"
राजा द्रुपद की शर्त के अनुसार, सभी ने अपना-अपना प्रयास किया। लेकिन कोई भी मछली की आंख पर निशाना नहीं लगा पाया। कौरवों को भी हार का सामना करना पड़ा। आखिरी में बारी आई पांडवों की। पांडवों की ओर से अर्जुन आए। उन्होंने धनुष उठाया और एक ही बार में तीर को मछली की आंख में मार दिया। यह देख सभी चकित रह गए। इसके बाद पति की आज्ञा से द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाल डाल दी और दोनों का विवाह हो गया।