धर्म-अध्यात्म

हरतालिका तीज पर ऐसे करें शिव-गौरी वंदन, जानिए पूजा विधि, महत्व और कथा

Nidhi Markaam
9 Sep 2021 3:02 AM GMT
हरतालिका तीज पर ऐसे करें शिव-गौरी वंदन, जानिए पूजा विधि, महत्व और कथा
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इस दिन महिलाएं पति के लिए उपवास रखकर शिव-गौरी का पूजन-वंदन कर झूला झूलती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय लोक संस्कृति में ऐसे कई त्योहार हैं, जो परिवार और जीवनसाथी की मंगलकामना के भाव से जुड़े हैं। हरतालिका तीज भी मुख्यतः स्त्रियों का त्योहार है,जो जीवन में प्रेम-स्नेह की सोंधी सुगंध और आपसी जुड़ाव का उत्सव है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। अखंड सौभाग्य का यह पर्व इस बार 9 सितंबर, गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं पति के लिए उपवास रखकर शिव-गौरी का पूजन-वंदन कर झूला झूलती है,सुरीले स्वर में सावन के गीत-मल्हार गाती हैं। पूजा-अर्चना के साथ उल्लास-उमंग का यह त्योहार एक पारंपरिक उत्सव के रूप में जीवन में नए रंग भरता है, दांपत्य में प्रगाढ़ता लाता है, साथ ही परिवार और समाज को स्नेह सूत्र में बांधता है।

आज के समय में भी इसकी महत्वता बनी हुई है। सच तो यह है कि हमारे धर्म में हर त्योहार, व्रत जीवन में आने वाली समस्याओं के समाधान से जुड़ा हुआ है। परिवार या दांपत्य जीवन में किसी कारणवश मन-मुटाव हो गया हो, कटुता आ गई हो, तो उसे दूर करने के लिए उनमें सकारात्मक भावना पैदा करने के लिए ही हमारे ऋषि-मुनियों ने ऐसे व्रत-त्योहारों का विधान किया है।

शिव-गौरी का वंदन

मनचाहा वर पाने के लिए कुंवारी लड़कियां भी भगवान शिव और माता पार्वती के लिए इस व्रत को रखती हैं। परिवार की कुशलता के लिए किए जाने वाले इस व्रत में शिव-पार्वती के साथ गणेशजी की पूजा होती है। प्रकृति और प्रेम के भाव से जुड़े इस पर्व पर महिलाएं मिट्टी या बालू से मां पार्वती और शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में सुहाग की सभी सामग्री को एकत्रित कर थाली में सजाकर माता पार्वती से मन ही मन अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए अर्पित करती हैं व कथा सुनती हैं। पूजा के बाद इन मूर्तियों को नदी या किसी पवित्र जलाशय में प्रवाहित कर दिया जाता है। शिव-पार्वती के वंदन से जुड़े इस पर्व पर कई विवाहित स्त्रियां तो निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी आयु और सुखद दांपत्य जीवन के लिए प्रार्थना करती है।

हरतालिका तीज की व्रत कथा

शास्त्रों के अनुसार, हिमवान की पुत्री माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए हिमालय पर्वत पर अन्न त्याग कर घोर तपस्या शुरू कर दी थी। इस बात से पार्वती जी के माता-पिता काफी चिंतित थे। तभी एक दिन देवर्षि नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती जी के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह का प्रस्ताव लेकर पहुंचे। माता पार्वती शिव से विवाह करना चाहती थी अतः उन्होंने यह शादी का प्रस्ताव ठुकरा दिया। पार्वतीजी ने अपनी एक सखी को अपनी इच्छा बताई कि वह सिर्फ भोलेनाथ को ही पति के रूप में स्वीकार करेंगी। सखी की सलाह पर पार्वतीजी ने घने वन में एक गुफा में भगवान शिव की आराधना की। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने मिट्टी से शिवलिंग बनकर विधिवत पूजा की और रातभर जागरण किया। पार्वती जी के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था।


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