धर्म-अध्यात्म

इस चैत्र नवरात्रि कैसे करे देवी मां को प्रसन्न

Apurva Srivastav
12 March 2023 2:00 PM GMT
इस चैत्र नवरात्रि कैसे करे देवी मां को प्रसन्न
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हिंदू धर्म में वैसे तो कई पर्व मनाए जाते है
हिंदू धर्म में वैसे तो कई पर्व मनाए जाते है लेकिन देवी आराधना को समर्पित नवरात्रि का व्रत बेहद ही खास माना जाता है ये पूरे नौ दिनों तक चलता है इस दौरान भक्त माता के अलग अलग रूपों की विधिवत पूजा करते है। इस साल नवरात्रि का आरंभ 22 मार्च से हो रहा है जो कि 30 मार्च को समाप्त होगा।
इस दौरान देवी मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त मां कामाक्षी स्तोत्रम् का पाठ कर सकते है। मान्यता है कि इस चमत्कारी पाठ से मां दुर्गा के नौ रूपों का आशीर्वाद मिलता है जिससे जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती है, तो आज हम आपके लिए लेकर आए है ये कामक्षी स्तोत्रम् पाठ।
कामक्षी स्तोत्रम्—
कल्पानोकहपुष्पजालविलसन्नीलालकां मातृकां
कान्तां कञ्जदलेक्षणां कलिमलप्रध्वंसिनीं कालिकाम् ।
काञ्चीनूपुरहारदामसुभगां काञ्चीपुरीनायिकां
कामाक्षीं करिकुम्भसन्निभकुचां वन्दे महेशप्रियाम् ॥१॥
काशाभांशुकभासुरां प्रविलसत्कोशातकीसन्निभां
चन्द्रार्कानललोचनां सुरुचिरालङ्कारभूषोज्ज्वलाम् ।
ब्रह्मश्रीपतिवासवादिमुनिभिः संसेविताङ्घ्रिद्वयां
कामाक्षीं गजराजमन्दगमनां वन्दे महेशप्रियाम् ॥२॥
ऐं क्लीं सौरिति यां वदन्ति मुनयस्तत्त्वार्थरूपां परां
वाचाम् आदिमकारणं हृदि सदा ध्यायन्ति यां योगिनः ।
बालां फालविलोचनां नवजपावर्णां सुषुम्नाश्रितां
कामाक्षीं कलितावतंससुभगां वन्दे महेशप्रियाम् ॥३॥
यत्पादाम्बुजरेणुलेशम् अनिशं लब्ध्वा विधत्ते विधिर्
विश्वं तत् परिपाति विष्णुरखिलं यस्याः प्रसादाच्चिरम् ।
रुद्रः संहरति क्षणात् तद् अखिलं यन्मायया मोहितः
कामाक्षीं अतिचित्रचारुचरितां वन्दे महेशप्रियाम् ॥४॥
सूक्ष्मात् सूक्ष्मतरां सुलक्षिततनुं क्षान्ताक्षरैर्लक्षितां
वीक्षाशिक्षितराक्षसां त्रिभुवनक्षेमङ्करीम् अक्षयाम् ।
साक्षाल्लक्षणलक्षिताक्षरमयीं दाक्षायणीं सक्षिणीं
कामाक्षीं शुभलक्षणैः सुललितां वन्दे महेशप्रियाम् ॥५॥
ओङ्काराङ्गणदीपिकाम् उपनिषत्प्रासादपारावतीम
Navratri vrat 2023 do these upay on navratri puja
आम्नायाम्बुधिचन्द्रिकाम् अधतमःप्रध्वंसहंसप्रभाम् ।
काञ्चीपट्टणपञ्जराऽऽन्तरशुकीं कारुण्यकल्लोलिनीं
कामाक्षीं शिवकामराजमहिषीं वन्दे महेशप्रियाम् ॥६॥
ह्रीङ्कारात्मकवर्णमात्रपठनाद् ऐन्द्रीं श्रियं तन्वतीं
चिन्मात्रां भुवनेश्वरीम् अनुदिनं भिक्षाप्रदानक्षमाम् ।
विश्वाघौघनिवारिणीं विमलिनीं विश्वम्भरां मातृकां
कामाक्षीं परिपूर्णचन्द्रवदनां वन्दे महेशप्रियाम् ॥७॥
वाग्देवीति च यां वदन्ति मुनयः क्षीराब्धिकन्येति च
क्षोणीभृत्तनयेति च श्रुतिगिरो याम् आमनन्ति स्फुटम् ।
एकानेकफलप्रदां बहुविधाऽऽकारास्तनूस्तन्वतीं
कामाक्षीं सकलार्तिभञ्जनपरां वन्दे महेशप्रियाम् ॥८॥
मायाम् आदिम्कारणं त्रिजगताम् आराधिताङ्घ्रिद्वयाम्
आनन्दामृतवारिराशिनिलयां विद्यां विपश्चिद्धियाम् ।
मायामानुषरूपिणीं मणिलसन्मध्यां महामातृकां
कामाक्षीं करिराजमन्दगमनां वन्दे महेशप्रियाम् ॥९॥
कान्ता कामदुधा करीन्द्रगमना कामारिवामाङ्कगा
कल्याणी कलितावतारसुभगा कस्तूरिकाचर्चिता
कम्पातीररसालमूलनिलया कारुण्यकल्लोलिनी
कल्याणानि करोतु मे भगवती काञ्ची_पुरी देवता ॥१०॥
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