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धर्म-अध्यात्म
वैभव लक्ष्मी व्रत,कैसे रखते हैं, जाने कथा और इसका महत्त्व
Manish Sahu
8 Sep 2023 5:00 PM GMT
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धर्म अध्यात्म: देवी लक्ष्मी को धन और और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. वैभव लक्ष्मी व्रत को वरदलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है. मान्यता है कि शुक्रवार के दिन जो इस व्रत को रखता है उसके जीवन में कभी धन, सौभाग्य और एश्वर्य की कमी नहीं होगी. लेकिन इस माता लक्ष्मी व्रत की कथा क्या है इसे रखने का क्या महत्त्व है ये तो आपको बताएंगे ही साथ आपकी शुक्रवार का व्रत रखने की सही विधि भी बता रहे हैं. अगर आप सच्चे दिल से मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं तो इसका लाभ भी आपको मिलता है.
कहते हैं मां लक्ष्मी बहुत ही चंचल हैं. उन्हें सदैव अपने पास रखना मुश्किल है. लेकिन आपने अगर माता लक्ष्मी का आशीर्वाद एक बार पा लिया तो इस जन्म में आपका उद्धार निश्चित है. माता की नियमपूर्वक आराधना करने वाले को सदैव उनका आशीर्वाद मिलता है जिससे उनके जीवन में कभी किसी चीज़ की कोई कमी नहीं होती
माता लक्ष्मी की व्रत कथा
एक समय के बात है एक गांव में बहुत सारे लोग रहते थे जो बहुत मेहनत करते थे और आय अर्जित करते थे लेकिन वो आपस में कभी एक-दूसरे की मदद नहीं करते थे. धीरे-धीरे यहां पर बुराईयों में अपना घर बनाना शुरु कर दिया. गांव के कुछ लोगों को शराब, जुए, चोरी और डकैती की लच लग गयी. लेकिन फिर भी इस गांव में एक ऐसा परिवार था जो अभी भी इन सब चीज़ों से बेहद दूर रहता था.
शीला और उसके पति अपनी गृहस्थी पर ध्यान देते थे. शीला धार्मिक प्रकृति की महिला थी जो माता लक्ष्मी की भक्त थी. प्रतिदिन मंदिर जाती थी. ये पति-पत्नी कभी किसी की बुराई नहीं करते थे. अपने काम से मतलब रखते थे और सुखी जीवन जीते थे. प्रभु भजन गाते थ, गांव के लोग भी सब उनका सराहना करते थे.
लेकिन कुछ समय बाद शीला का पति कुछ बुरे लोगों के बीच बैठने लगा. उसकी संगत बिगड़नी शुरु हो गयी. जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब ने उसे जल्द रोड़पति बना दिया. शराब, जुए की लत ने उसे भी बर्बाद कर दिया.
शीला अपने पति की बर्ताव से दुखी रहती अब उसका मन पूजा-पाठ में भी नहीं लगता. धीरे-धीरे उसने मंदिर जाना भी कम कर दिया. घर में रहकर वो भगवान का ध्यान करती. एक दिन दोपहर के समय एक बूढ़ी महिला शीला के घर आयी उसने द्वार पर दस्तक दी, शीला ने दरवाजा खोलकर देखा तो सामने मां समान एक बूढ़ी महिला थी जिसके चेहरे पर आलौकिक तेज था. मानों आंखों में अमृत बह रहा था उसे देखते ही करुणा और प्यार की झलक आ रही थी.
शीला ने आदरपूर्वक उसे घर के अंदर बुलाया और संकोच के साथ फटी हुई चादर बिछाकर उसे बैठने का आग्रह किया.
Manish Sahu
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