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ज्ञानी मनुष्य की कैसे करें पहचान, जानिए विदुर नीति के इन श्लोकों के माध्यम से
महात्मा विदुर कुशाग्र बुद्धि के होने के साथ ही साथ महान विचारक व दूरदर्शी भी थे। महात्मा विदुर जी इतने दूरदर्शी थे कि वे समय से पहले ही आने वाली परिस्थितियों को भांपने में सक्षम थे। महाभारत के युद्ध से पहले ही विदुर जी महाराज धृतराष्ट्र को युद्ध परिणामों के बारे मे अवगत करवा दिया था। विदुर जी और महाराज धृतराष्ट्र के बीच का संवाद विदुर नीति के रूप में जाना जाता है। विदुर जी के द्वारा बताई गई बातें आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय हुआ करती थी। यदि विदुर जी की नीतियों का अनुसरण जीवन में किया जाए तो कई तरह की समस्याओं से बचा जा सकता है साथ ही जीवन को सुखी बनाया जा सकता है। विदुर नीति में ज्ञानी व्यक्ति की पहचान पर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। तो चलिए जानते हैं क्या होते हैं ज्ञानी मनुष्य के लक्षण इन श्लोकों के माध्यम से ।
निषेवते प्रशस्तानी निन्दितानी न सेवते।
अनास्तिकः श्रद्धान एतत् पण्डितलक्षणम्।।
अर्थ: जो अच्छे कर्म करता है और बुरे कर्मों से दूर रहता है, साथ ही जो ईश्वर में भरोसा रखता है और श्रद्धालु है, उसके ये सद्गुण पंडित यानि ज्ञानी होने के लक्षण हैं।
विदुर नीति: शांत रहने वाला मनुष्य ही ज्ञानी है।
न ह्रश्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते।
गंगो ह्रद इवाक्षोभ्यो य: स पंडित उच्यते।।
अर्थ: जो अपना आदर-सम्मान होने पर खुशी से फूल नहीं उठता, और अनादर होने पर क्रोधित नहीं होता तथा गंगाजी के कुण्ड के समान जिसका मन अशांत नहीं होता, ऐसा मनुष्य ही ज्ञानी कहलाता है।
विदुर नीति: धन, विद्या अर्जन करने वाला व्यक्ति ज्ञान है।
अर्थम् महान्तमासाद्य विद्यामैश्वर्यमेव वा।
विचरत्यसमुन्नद्धो य: स पंडित उच्यते।।