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धर्म-अध्यात्म
मूषक कैस बना भगवान गणेश का वाहन, जानिए ये पौराणिक कथा
Bhumika Sahu
14 Sep 2021 3:27 AM GMT
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देशभर में गणेश उत्सव की धूम मची हुई है. श्रद्धालु इन 10 दिनों तक गणेश जी की विधि- विधान से पूजा अर्चना करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान गणेश ने मूषक को अपना वाहन क्यों बनाया है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देशभर में गणेश उत्सव का त्योहार धूम – धाम से मनाया जा रहा है. ये त्योहार गणेश चतुर्दशी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है. इस बार गणेश उत्सव 10 सितंबर से शुरू हुआ है जो 19 सितंबर 2021 तक चलेगा. इन 10 दिनों तक बप्पा की पूजा अर्चना की जाती है. क्या आपके मन में भी गणेशजी को देखकर ये सवाल आता है कि आखिर क्यों गणेश जी ने मूषक को अपना वाहन चुना होगा. अगर हां तो हम आपको इसका जवाब देते हैं. इस सवाल का जवाब जानने के लिए पढ़िए ये पौराणिक कथा.
पौराणिक कथा के अनुसार, सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थें. उनकी पत्नी पतिव्रता होने के साथ- साथ रूपवती भी थीं. उनके मनमोहक रूप पर यक्ष और गंधर्व सब मोहित थे. एक बार सभी यक्ष और गर्धर्वों ने ऋषि पत्नी मनोमयी का हरण करने का निर्णय लिया. लेकिन मनोमयी पतीव्रता होने के साथ सौभरि ऋषि के कारण साहस नहीं कर पाते थे.
लेकिन उसमें से एक दुष्ट गर्धव क्रौंच खुद को रोक नहीं पाया और मनोमयी का हरण करने के लिए पहुंच गया. उसी समय सौभरि ऋषि आ गए और उन्होंने क्रौंच को श्राप दिया कि जिस तरह तुम एक चोर की तरह मेरी पत्नी का हरण कर रहे थे. उसी प्रकार तुम मूषक बना जाओगे और धरती पर छुपकर रहना पड़ेगा और पेट भरने के लिए चोरी करनी पड़ेगी. क्रौंच ऋषि से अपने कृत्य के लिए माफी मांगने लगा.
क्रौंच ने ऋषि से कहा कि आप दयालु है मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी इसलिए मैंने ऐसा अपराध किया. उस समय ऋषि ने कहा मेरा श्राप तो व्यर्थ नहीं जाएगा. लेकिन तुम्हें द्वापर युग में महार्षि पराशर के यहां गणपति मिलेंगे और तुम्हें अपना वाहन बना लेंगे. इससे देवता भी तुम्हारा सम्मान करेंगे.
क्रौंच भले ही मूषक बन गया. लेकिन उसने अपने अंदर कोई सुधार नहीं किया. वो अपने ताकत की घमंड में इतना चूर था कि अपने रास्ते में आने वाली सभी वस्तुओं को तोड़ता आगे चला गया. एक बार वह महार्षि पराशर के आश्रम में पहुंच गया और वहां पर रखी सभी चीजों को नष्ट कर दिया. उसने रखी ग्रंथों और किताबों को कुतर दिया.
महार्षि पराशर ने मूषक की करतूत गणेश जी को बताया और उन्होंने मूषक को सबक सिखाने के लिए पाश फेंका. पाश मूषक का पीछा करते हुए पाताल लोक पहुंच गया और गले में लटक गया. पाश से घिसटता हुआ मूषक गणेश जी के पास पहुंचा. लेकिन तब तक वो बेहोश हो चुका था. कुछ समय बाद जब उसे होश आया तो उसने बिना समय गवाएं गणेशजी की आराधना शुरू कर दी और अपने प्राणों की भीख मांगेन लगा.
गणेश जी मूषक से प्रसन्न हुए और उन्होंने कुछ वरदान मांगने को कहा. उन्होंने तुमने लोगों को बहुत कष्ट दिया है और तुम मेरे शराणार्थी हो इसलिए तुम्हें माफ करता हूं. गणेशजी से प्राणदान मिलते ही क्रौंच में अहंकार आ गया और उसने कहा मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए. अगर आपकी कोई इच्छ है तो पूरी कर देता हूं. गणेश जी मुस्कारए और बोलों अगर तुम्हारा वचन सत्य है तो तुम मेरे वाहन बन जाओ. मूषक ने झट से तथास्तु कह दिया.
इसके बाद गणेश जी उस पर सवार हो गए. उनके शरीर के भार से मूषक के प्राण संकट में आ गए. क्रौंच ने भगवान गणेश से अपना भार कम करने की विनती करने लगा. तब गणेश जी ने उसका गिड़गिड़ाना स्वीकार कर लिया. तब क्रौंच ने गणेश जी से वरदान मांगा कि वह उनका त्याग कभी न करें. गणेश जी के सवार होते ही उसकी बुद्धि खुल जाती है और उसका अहंकार भी टूट जाता है.
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