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बुधवार का दिन भगवान श्रीगणेश जी को समर्पित है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा उपासना की जाती है। वहीं, सभी धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम भगवान गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है।
बुधवार का दिन भगवान श्रीगणेश जी को समर्पित है। इस दिन गणपति बप्पा की पूजा उपासना की जाती है। वहीं, सभी धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम भगवान गणेश जी की पूजा करने का भी विधान है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान गणेश बाल्यावस्था में बेहद नटखट रहे हैं। उनकी शरारत की कथा शास्त्रों एवं पुराणों में निहित है। उनकी शरारत में सवारी मूषक का भी पूर्ण सहयोग रहता था। किदवंती है कि चिरकाल में माता पार्वती की आज्ञा पाकर गणेश जी ने भगवान शिव को गृह में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। इस वजह से भगवान शिव ने उनका मस्तक धड़ से अलग कर दिया था। जब माता पार्वती को यह बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने शिव जी से यथाशीघ्र पुत्र को ठीक करने की बात की। उस समय ऐरावत का मस्तक लगाकर गणेश जी को जीवित किया। वहीं, गणेश जी की सवारी मूषक की कथा भी बेहद रोचक है। आइए जानते हैं-
क्या है कथा
शास्त्रों में निहित है कि सौभरि ऋषि की अर्धांगनी मनोमयी अति रूपवान थी। उनकी खूबसूरती पर राक्षस और गंधर्व मोहित रहते थे। एक बार क्रौंच नामक गन्धर्व ने ऋषि सौभरि की अर्धांगनी का हरण करने की सोची। यह विचार लेकर क्रौंच ऋषि के आश्रम जा पहुंचा। जब वह मनोमयी का हरण करने जा रहा था। उसी समय ऋषि ने क्रौंच को श्राप दिया कि तूने शास्त्र के विरुद्ध जाकर घोर अपराध किया है। इसके लिए तुझे श्राप देता हूं कि तू अब मूषक बन जाएगा।
तत्क्षण, क्रौंच मूषक बन गया। तत्पश्चात, क्रौंच ने क्षमा याचना की। यह सुन ऋषि ने गंधर्व को क्षमा कर दिया, लेकिन क्रौंच को श्राप से मुक्ति नहीं मिली। कालांतर में मूषक क्रौंच ने ऋषि पराशर के आश्रम में उत्पात मचाया। उस समय भगवान श्रीगणेश भी आश्रम में उपस्थित थे। यह देखकर उन्होंने क्रौंच को सबक सीखाने के लिए पाश फेंका। क्रौंच अपनी जान बचाने के लिए पाताल लोक पहुंच गया। इसके पश्चात भी वह बच नहीं सका। पाश में फंसा क्रौंच ने भगवान से वंदना की। भगवान गणेश ने प्रसन्न होकर वर मांगने की अनुमति दी, किंतु क्रौंच ने कोई वर नहीं मांगा। भगवान गणेश से आदेश देने की बात की। तब भगवान गणेश ने सवारी बनने की बात कही। कालांतर से क्रौंच भगवान की सवारी बन गया।
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