धर्म-अध्यात्म

गाय के लोभ में कैसे एक राजा बन गया महान ऋषि, पढ़ें पौराणिक कथा

Rani Sahu
23 April 2022 6:19 PM GMT
गाय के लोभ में कैसे एक राजा बन गया महान ऋषि, पढ़ें पौराणिक कथा
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पौराणिक कथाओं में कई महान ऋषियों का उल्लेख मिलता है

पौराणिक कथाओं में कई महान ऋषियों का उल्लेख मिलता है। इनमें से एक हैं महर्षि विश्वामित्र। कहते हैं कि विश्वामित्र जन्म से ब्राह्मण नहीं, बल्कि क्षत्रिय थे। उन्हें राजा कौशिक के नाम से जाना जाता था। एक बार उनकी मुलाकात महर्षि वशिष्ठ से हुई और फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने तप शुरू कर दिया और वेद-पुराण का ज्ञान लेकर महान ऋषि बन गए। पढ़ें राजा कौशिक के महर्षि विश्वामित्र बनने की कहानी।

कौन थे राजा कौशिक
राजा कौशिक कुशनाभ के पौत्र और राजा गाधि के पुत्र थे। वे बहुत ही सहज और सौम्य शासक थे। राजा कौशिक अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे। अक्सर वे प्रजा की हालात को जानने के लिए महल से बाहर निकल पड़ते थे।
एक बार राजा कौशिक अपनी विशाल सेना के साथ जंगल की ओर निकले। बीच में महर्षि वशिष्ठ का आश्रम पड़ा। राजा कौशिक महर्षि वशिष्ठ से मिलने के लिए अपनी सेना के साथ वहीं ठहर गए। महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक और उनकी सेना की खूब आवभगत की। सभी सैनिकों को अच्छे से अच्छे व्यंजन परोसे गए। ये देखकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुए।
राजा कौशिक ने महर्षि वशिष्ठ से पूछा कि एक ऋषि होते हुए आपने इतनी बड़ी सेना के भोजन का इंतजाम कैसे कर दिया। तब महर्षि ने कहा कि उनके पास नंदिनी नाम की एक गाय है, जो स्वर्ग में रहने वाली कामधेनू गाय की पुत्री है। नंदिनी गाय में ऐसी शक्ति है कि लाखों लोगों का एक साथ भरण पोषण किया जा सकता है। इंद्र देव ने नंदिनी गाय महर्षि वशिष्ठ को भेंट की थी।
नंदिनी गाय के चलते कौशिक ने वशिष्ठ पर कर दिया आक्रमण
नंदिनी गाय की महिमा सुनकर राजा कौशिक के मन में लोभ की भावना पैदा हो गई। उन्होंने महर्षि वशिष्ठ से नंदिनी गाय उन्हें देने की बात कही। इसके बदले में वे उन्हें मुंहमांगी कीमत देने के लिए भी तैयार हो गए। महर्षि वशिष्ठ ने नम्रता से राजा के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि वह नंदिनी गाय किसी को भी नहीं दे सकते।
तब राजा कौशिक ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि उन्हें हर हाल में नंदिनी गाय चाहिए। सैनिकों ने महर्षि पर आक्रमण कर दिया। इसके बाद नंदिनी गाय ने सभी सैनिकों को परास्त कर दिया और राजा कौशिक को बंदी बनाकर महर्षि वशिष्ठ के सामने पेश कर दिया। महर्षि वशिष्ठ ने राजा कौशिक के एक बेटे को छोड़कर सभी पुत्रों की मौत होने का श्राप दे दिया।
राजा कौशिक जब अपने महल पहुंचे तो देखा कि उनके एक पुत्र को छोड़कर सभी पुत्रों की मौत हो चुकी थी। इससे आहत होकर वे राजपाट अपने पुत्र को सौंपकर जंगल में चले गए। उन्होंने कई सालों तक शिव की तपस्या की। शिवजी राजा की तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने शिव से कई सारे दिव्य अस्त्र मांगे। शिव ने उन्हें दिव्यास्त्र दे दिए।
इसके बाद राजा कौशिक दिव्यास्त्रों के साथ महर्षि वशिष्ठ के पास पहुंचे और उनपर आक्रमण कर दिया। महर्षि वशिष्ठ के पास भी कई दिव्य शक्तियां थीं, उन्होंने राजा कौशिक के सभी दिव्यास्त्रों को नष्ट कर दिया। फिर वशिष्ठ ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। इससे पूरी धरती पर संकट का खतरा पैदा हो गया। सभी देव महर्षि वशिष्ठ के पास पहु्ंचे और मानव जगत के हित में ब्रह्मास्त्र वापस लेने का आग्रह किया। वशिष्ठ का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया।
दूसरी ओर, कौशिक एहसास हुआ कि इतने सारे दिव्यास्त्र होने के बावजूद वे एक ऋषि से हार गए। उन्हें पता चल गया कि कितना भी शक्तिशाली और पराक्रमी राजा क्यों न हो, सिद्धी से प्राप्त शक्ति के सामने वह कुछ भी नहीं है।
कौशिक फिर से जंगल की ओर चले गए और एकांत में तपस्या शुरू कर दी। उनकी तपस्या से इंद्र देव प्रकट हुए और उन्होंने कौशिक को ब्रह्मत्व प्रदान किया। इस तरह राजा कौशिक ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बन गए। मगर विश्वामित्र के मन में अब भी महर्षि बनने की चाहत थी। उन्होंने फिर से कठिन तप शुरू कर दिया। फिर काम और क्रोध पर विजय पाकर उन्होंने महर्षि पद प्राप्त कर लिया।
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