धर्म-अध्यात्म

17 मार्च को मनाया जाएगा होलिका दहन का पर्व, जानें इसका महत्व और इसके पीछे का कारण

Ritisha Jaiswal
16 March 2022 12:42 PM GMT
17 मार्च को मनाया जाएगा होलिका दहन का पर्व,  जानें इसका महत्व और इसके  पीछे का कारण
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होलिका दहन का पर्व 17 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन मनाने के पीछे का कारण भक्त प्रहलाद को माना जाता है। दै

होलिका दहन का पर्व 17 मार्च को मनाया जाएगा। होलिका दहन मनाने के पीछे का कारण भक्त प्रहलाद को माना जाता है। दैत्यराज हिरण्यकश्यप खुद को ईश्वर मानता था जिसके कारण वह हर किसी से उसकी पूजा करने के लिए बाध्य करता था। लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त था। पुत्र को कई बार समझाने के बाद भी प्रहलाद से विष्णु जी की भक्ति नहीं छोड़ी। ऐसे में हिरण्यकश्यप से अपने पुत्र को कई तरह की यातनाएं देना शुरू कर दिया। फिर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद ली। क्योंकि होलिका को आशीर्वाद था कि वह आग से जल नहीं सकती। इसी कारण होलिका ने अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में बैठाकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए। इस कथा को अधिकतर लोग ही जानते हैं लेकिन इस बात को कम ही लोग जानते हैं कि यह घटना जिस स्थान में घटी वह कहां मौजूद है।

बता दें कि बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ धरहरा नामक एक गांव है। जहां पर होलिका आग में प्रहलाद को लेकर बैठी थी और वह खुद ही भस्म हो गई थी। इतना ही नहीं ये बिहार का वह स्थान है जहां पर भगवान विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।
माणिक्य स्तंभ
धरहरा में ही एक खंभा स्थापित है। स्तंभ को माणिक्य स्तंभ के नाम से जाना जाता है। दरअसल, होलिका दहन के बाद भी भक्त प्रहलाद का कुछ नहीं हुआ तो खुद दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की ठानी। ऐसे में दैत्यराज से अपने पुत्र से कहा कि तू कहता है कि विष्णु हर जगह है तो क्या इस खंभे में भी होगा। ये कहते ही हिरण्यकश्यप ने जोर से खंभे में लात मार दी। जैसे ही खंभा टूटा वैसे ही भगवान विष्णु का अवतार नरसिंह भगवान उसी खंभे से प्रकट हुए और दैत्यराज वध कर दिया। लोक मान्यता है कि माणिक्य स्तंभ वहीं खंभा है, जिससे नरसिंह भगवान प्रकट हुए थे।
कहा जाता है कि इस खड़े को कई बार तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन नाकाम रहें। यह खंभा 65 डिग्री झुका हुआ है। यह स्तंभ जमीन से 10 फीट ऊंचा एवं 12 फीट मोटा बेलनाकार है। कहा जाता है कि इसका अंदरूनी हिस्सा खोखला है। खंभे के ऊपरी हिस्से में एक छेद था जिसमें पहले पत्थर या कोई अन्य चीज का टुकड़ा डालने पर पानी में कुछ गिरने जैसी आवाज आती थी। इससे अनुमान लगाया जाता था कि स्तंभ के निचले हिस्से में जल का स्त्रोत है।
यहां खेली जाती है राख से होली
स्थानीय मान्यता है जह होलिका मर गई थी और प्रहलाद जीवीत रह गए थे तो उसकी खुशी पर सभी से उसी राख और मिट्टी को एक-दूसरे के ऊपर लगाया था। जब से ही होली की शुरुआत हुई ।


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