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महाश्मशान में हर साल होता है होली का जश्न, चिता की राख से खेली जाती है होली

भारत में होली का त्योहार बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है. इसमें कुछ खास जगहों की होली तो विश्वप्रसिद्ध है. जैसे कृष्ण नगरी कही जाने वाली मथुरा, वृंदावन, बरसाने की होली देखने के लिए तो पूरी दुनिया से लोग आते हैं. इन शहरों में होली से काफी दिन पहले ही होली का उत्सव शुरू हो जाता है. काशी भी ऐसे ही शहरों में से एक है, जहां होली का उत्सव कुछ दिन पहले रंगभरी एकादशी से ही शुरू हो जाता है. इस दिन शिव भक्त भोलेनाथ के साथ होली खेलते हैं, लेकिन यह होली बहुत अलग होती है.
चिता की राख से होली
काशी के महाश्मशान में रंगभरी एकादशी के दिन खेली गई होली बाकी होली से बहुत अलग होती है. क्योंकि यहां रंगों से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेली जाती है. मोक्षदायिनी काशी नगरी के महाशमशान हरिश्चंद्र घाट पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं. कहा जाता है कि यहां कभी चिता की आग ठंडी नहीं होती है. पूरे साल यहां गम में डूबे लोग अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई देने आते हैं लेकिन साल में एकमात्र होली का दिन ऐसा होता है जब यहां खुशियां बिखरती हैं. रंगभरी एकादशी के दिन इस महाश्मशान घाट पर चिता की राख से होली खेली जाती है.
350 साल पुरानी है परंपरा
इस साल भी 14 मार्च को वाराणसी में रंगभरी एकादशी के दिन श्मशान घाट पर रंगों के साथ चिता की भस्म से होली खेली गई. इस दौरान डमरू, घंटे, घड़ियाल और मृदंग, साउंड सिस्टम से निकलता संगीत जोरों पर रहा. कहते हैं कि चिता की राख से होली खेलने की यह परंपरा करीब 350 साल पुरानी है. इसके पीछे कहानी है कि भगवान विश्वनाथ विवाह के बाद मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी. लेकिन वे श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरियों के साथ होली नहीं खेल पाए थे. तब उन्होंने रंगभरी एकादशी के दिन उनके साथ चिता की भस्म से होली खेली थी.