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Holi 2021: दो ऋतुओं का संधिकाल है होली लौकिकता और पारलौकिकता से परिपूर्ण
जनता से रिश्ता वेबडेस्क: दो ऋतुओं का संधिकाल होली बड़ा विलक्षण पर्व है। इसमें लौकिकता और पारलौकिकता दोनों के सूत्र समाहित हैं। यह बाह्य सुख से ज़्यादा अंतर्मन के आनन्द का काल है। इस रात्रि में शब्दयोग को साधना बेहद प्रभावी हो जाती है और ऊपर से उतरने वाली उन ब्रह्मांडीय ध्वनियों का श्रवण सहज हो जाता है, जो सृष्टि के विस्तार का कारक माना जाता है।आत्मा का तत्व भी शब्द है। इसी को नाम और ब्रह्मनाद भी कहते हैं। होलिका दहन के पश्चात स्वयं की इंद्रियों कर क़ाबू पाकर निरंतर अभ्यास से दिव्य दृष्टि, ज्ञान चक्षु जिसे शिव नेत्र भी कहते हैं, जागृत हो सकता है जो दोनों आँखों के मध्य विराजित सुरत की दृष्टि कही जाती है। यह रात्रि आत्मा के जागरण की प्रमुख रात्रियों में शुमार है। होली भाग्य बदलने का पर्व भी है।आंतरिक क्षमता के विस्तार की वह पावन बेला है होली, जिसके द्वारा हम नवीन कर्मों के माध्यम से नकारात्मकता का उन्मूलन कर अपना जीवन रूपांतरित कर सकते हैं। इसकी इसी विशेषता को पहचान कर ही लिंगपुराण में फाल्गुनिका अर्थात फाल्गुन-पूर्णिमा को ऐश्वर्य प्रदायक कहा गया है।